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न्याय का एक नमूना

न्याय का एक नमूना

जब से यह संसार बना है उस समय से लेकर आज तक दौलतमंदों और ताक़तवरों ने अपनी शक्ति और दौलत के माध्यम से फ़कीरों और कमज़ोरों के हक़ को छीना है।

अब तक दौलतमंद ना सिर्फ़ यह कि संसारिक कार्यों में बल्कि धार्मिक कार्यों में भी आगे आगे रहते हैं और कमज़ोर लोग पीछे रह जाते हैं।

इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के न्यायिक राज्य में ऐसा नहीं होगा, किसी की दौलत, दूसरे के वंचित होने का कारण नहीं बनेंगी।

उस समय हर इंसान के लिए न्याय ही न्याय होगा।

अब हम जो हदीस बयान करने जा रहै हैं वह सांसारिक राज्य के एक नमूने को बयान करती है

اول ما یظھر القائم من العدل ان ینادی منادیہ:

ان یسلم صاحب النافلۃ لصاحب الفریضۃ الحجر الاسود و الطواف

इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ सब से पहले जिस राज्य को स्थापित करेंगें वह यह है कि इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ का मुनादी घोषणा करेगा कि जो लोग मुस्तहब्बी हज अदा कर रहे हैं वह लोग हजरे असवद और तवाफ़(हज में ख़ान-ए-काबा के चारों ओर चक्कर लगाने को तवाफ़ कहते हैं।) के स्थान को उन लोगों के लिए ख़ाली कर दें कि जो लोग वाजबी हज अदा कर रहे हैं।(12)

मगर आज के समय में कुछ अमीर लोग पवित्रस्थल (मुक़द्दस मक़ाम) की ज़ियारत के मूल्य को इतना बढ़ा देते हैं कि ग़रीब लोग उसकी ज़ियारत से वंचित रह जाते हैं लेकिन इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर के ज़माने में महरुमियत को लक्षण तक मिट जाएगा। सब लोग ख़ान-ए-काबा और पवित्रस्थल(मुक़द्दस मक़ाम) की ज़ियारत कर सकेंगें इसी कारण इबादत में लोगों की भीड़ बहुत ज़्यादा होगी।

इस तरह इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ का संदेश ख़ान-ए-काबा के तमाम ज़ायरीन (ज़ियारत करने वाले लोग।) तक पहुँचेगा कि जो अपने वाजिब हज अदा कर चुके हैं वह दूसरों के लिए कष्ट का कारण ना बनें।

यह उस सांसारिक न्यातिक राज्य की पहली मिसाल है।

 


(12) बेहारुल अनवारः 52/374

 

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