न्याय पैग़मबरों की इच्छा
न्याय इंसानों के लिए इतना आवश्यक है कि ईश्वर ने सारे नबियों व पैग़मबरों और आसमानी किताबों को लोगों के बीच इसलिए भेजा तकि न्याय हो और हिंसा का अंत हो । ख़ुदा वन्दे आलम क़ुर्आन में फ़रमाता हैः
لقد ارسلنا رسلنا بالبینات و انزلنا معھم الکتاب والمیزان لیقوم الناس بالقسط
बेशक हम ने अपने रसूलों को दलील और मोजज़ों के साथ भेजा।और उनके साथ किताब और मीज़ान नाज़िल किया ताकि लोग न्याय करें।(1)
इसी मक़सद से पैग़मबरों को और आसमानी किताबों को भेजा तकि न्याय प्रचलित हो और हिंसा का अंत हो मगर अफ़सोस से कहना पड़ता है कि हर काल के क़ाबील के षणयंत्रो और न्याय के रास्ते मे रुकावट डालने वाले हमेशा से हैं और आज तक हैं इसी कारण कभी भी इंसानों के बीच न्याय प्रचलित ना हो सका और यह काम इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ की हुकूमत तक संभव नहीं हैं।और इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के राज्य तक कभी भी इंसानी समाज में न्याय प्रचलित नहीं हो सकता।
(1) सूरए हदीद आयत न0. 25
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