امام صادق عليه السلام : جيڪڏهن مان هن کي ڏسان ته (امام مهدي عليه السلام) ان جي پوري زندگي خدمت ڪيان هان.
2. विश्वास, आमाल में इज़ाफ़े का कारण

2. विश्वास, आमाल में इज़ाफ़े का कारण

अगर कीमिया थोड़ा सस्ता भी हो तो वह जिस धातु पर डाला जाता है उसको बहुत क़ीमती बना देता है। यक़ीन और विश्वास भी ऐसे ही हैं, क्योंकि यक़ीन, आमाल को क़ीमती बनाता हैं अगर ख़दा और उसकी करामतों पर यक़ीन ना हों तो फिर आमाल की कोई अहमियत नहीं है। अगर थोड़े से भी आमाल को यक़ीन के साथ अंजाम दिया जाए तो ख़ुदा के प्रति, शक और शंका के साथ अंजाम दिए गए ज़्यादा आमाल से भी बेहतर है।

इमाम-ए-सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

ان العمل الدائم القلیل علی الیقین افضل عند اللہ من العمل الکثیر علی غیر الیقین

यानीः ख़ुदा के नज़दीक, यक़ीन के साथ अंजाम दिया गया थोड़ा सा अमल, बिना यक़ीन के अंजाम दिए गए ज़्यादा अमल से बेहतर है।(10)

यह हदीस साफ़-साफ़ इस बात को बयान करती है कि यक़ीन से आमाल की क़ीमत बढ़ जाती है। यानी, यक़ीन के साथ अंजाम दिया गया थोड़ा सा अमल, बिना यक़ीन के अंजाम दिए गए ज़्यादा अमल से बेहतर है। इस आधार पर यक़ीन कीमिया की तरह है जो धातु पर पड़ते ही उसको सोना बना देता है उसी तरह किसी भी अमल में जब यक़ीन पैदा हो जाता है तो उस अमल की क़ीमत ख़ुदा की निगाहों में और बढ़ जाती है।

और यह बात भी ध्यान में रहे कि थोड़ा अमल भी ख़ुदा के नज़दीक बहुत क़ीमती होता है, और जब कोई अमल ख़ुदा कि निगाहों में क़ीमती होगा तो उसका असर इंसान के जीवन पर अवश्य पड़ेगा। इस बारे में हम यहाँ एक वाक़ेआ बयान करेंगेः

मरजए आली क़द्र, आयतुल्लाहुल उज़मा, जनाबे ख़ूई रहमतुल्लाह अलैह, यक़ीन से कही जाने वली बिसमिल्लाह के बारे में जनाब शैख़ अहमद (यह व्यक्ति जनाब आयतुल्लाहु उज़मा जनाब मीरज़ा शीराज़ी के मुहाफ़िज़ों में से था) से यह वाक़ेआ बयान करते हैं।

उन्होंने फ़रमाया कि स्वर्गीय मीरज़ा का एक और भी मुहाफ़िज़ था। जिसका नाम शैख़ मोहम्मद था जिसने मीरज़ा शीराज़ी के देहान्त के बाद सबसे मिलना-जुल्ना छोड़कर गोशा नशीनी कर ली थी।

एक कोई व्यक्ति शैख़ मोहम्मद के पास आया और उसने देखा कि वह अपने दिये में पानी ड़ालकर जलाने का प्रयास कर रहे हैं और थोड़ी देर में चेराग़ भी जलने लगा। वह व्यक्ति बहुत हैरान हुआ और उसका कारण पूछा ?

शैख़ मोहम्मद ने उसको जवाब दिया मीरज़ा शीराज़ी के देहान्त से मुझे बहुत दुख पहुँचा, और उस ग़म की वजह से मैंने लोगों से मिलना जुलना छोड़ दिया और अपने घर में ही रहने लगा हूँ। मगर एक दिन एक अरब तालिबे इल्म मेरे पास आया और मेरे साथ बहुत प्यार से पेश आया, और मेरे पास सूरज के डूबने तक रहा, उसने मुझ से बहुत बातें की और उसकी बातें मुझे बहुत पसंद आयी। और उसकी बातों से मेरे दिल का बोझ कुछ हल्का हो गया। उसके बाद वह कई दिन तक मेरे पास आता रहा और मैं भी उससे बहुत मानूस हो गया। एक दिन जब आया तो बातें करते-करते रात हो गयी और मुझे याद आया कि आज तो मेरे चेराग में तेल भी नहीं है और उस समय तक सारी दुकानें भी बंद हो चुकी थीं। और मैंने सोचा कि अगर इस समय तेल लाता हूँ तो इसकी बातें नहीं सुन पऊँगा और इतनी अच्छी-अच्छी बातों से वंचित रह जाऊँगा और अगर तेल नहीं जाता हूँ तो घर में रात भर अंधेरा रहेगा।

वह शायद मेरी हालत समझ गया था और कहा आज आप को क्या हो गया है कि मेरी बातों की तरफ़ आप का ध्यान नहीं है ?

मैंने कहा ऐसी बात नहीं है, मैं आप की बातें सुन रहा हूँ। उन्होंने कहा कि नहीं तुम्हारा ध्यान कहीं और है, क्या बात है मुझे बताओ ?

मैंने कहा कि बात यह है कि आज मेरे चेराग़ में तेल नहीं है।

उसने कहा कि यह बात तो बहुत ही आश्चर्यजनक है कि मैंने तुमसे इतनी बात की यहाँ तक कि बिस्मिल्लाह की फ़जीलत बयान की और आपने इससे इतना भी नहीं सीखा कि बिस्मिल्लाह की इतनी फ़जीलत है कि उससे चेराग़ में तेल की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

मैंने कहा कि मुझे याद नहीं कि आपने कोई ऐसी हदीस बयान की हो। उसने कहा कि आप भूल गये हैं। बिस्मिल्लाह की एक बरकत यह है कि जो जिस काम को भी सोच कर कहे वह पूरा हो जाता है। तुम अपने चेराग़ में यह सोचकर पानी भर दो की वह तेल है मगर यह ध्यान रखना कि पानी भरते हुए बिस्मिल्लाह कहना।

मैंने उसकी बात मान ली और उठकर चेराग़ में पानी भरने लगा और बिस्मिल्लाह कहकर उसको जलाया तो वह जलने लगा। उस समय से लेकर आज तक जब भी इस चेराग़ का तेल ख़त्म होता है मैं बिस्मिल्लाह कहकर उसमें पानी भरता हूँ और यह जलने लगता है।

मरजए आली क़दर, आयतुल्लाहुल उज़मा, जनाबे ख़ूई रहमतुल्लाह अलैह इस वाक़ेए को बयान करने के बाद फ़रमाते हैं: आशचर्यजनक बात इस वाक़ेए में यह है कि यह वाक़ेआ सब लोगों के जानने के बाद भी उस चेराग़ में ज़र्रा बराबर कोई फ़रक़ नहीं पड़ा।(11)

    जैसा की आप ने देखा कि बिस्मिल्लाह पर यह यक़ीन कितना असर अंदाज़ साबित हुआ।

 


10. उसूले काफ़ीः 2/57

11. बा महरमाने राज़ः 54

 

 

 

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