Imam sadIiq: IF I Percieve his time I will serve him in all of my life days
यक़ीन को शक में बदलने वाली निशानियाँ

यक़ीन को शक में बदलने वाली निशानियाँ

1.शकः

जो इंसान शक मे पड़ जाए वह आध्यात्मिक उन्नति नहीं कर सकता है। इसलिए यही कह सकते हैं कि जो इंसान आध्यात्मिक उन्नति (मानवी तरक़्की ) करना चाहता है उसको चाहिए की अपने दिल से शक व शंका को निकाल दे।

इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

انفوا عن نفوسکم الشکوک

अपने नफ़्सों से शक व शंका को निकाल दो।(14)

मानवी और रूहानी शक्तियों को पाने के लिए अपने दिल से शक व शंका का निकालना बहुत ज़रूरी है, ताकि उसमें यक़ीन और ईमान भर जाए, इसलिए कि जब तक शक व शंका होंगी तब तक दिल में ईमान और यक़ीन जगह नहीं बना सकते हैं।

अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम ने हमेशा हम लोगों को अपने दिल से शक को दूर करने के बारे में ताकीद की है।इसीलिए हम मुनाजाते मुतीईन में पढ़ते हैं:

واثبت الحق فی سرائرنا فان الشکوک و الظنون لواقح الفتن

ख़ुदा ! मेरे बातिन में हक़ को मुसतहकम कर दे, क्योंकि शक हमेशा फ़ितना पैदा करते हैं।(15)

तारीख़ से यह बात पता चलती है कि सदरे इस्लाम से लेकर आज तक जिन फ़ितना व फ़साद ने मुसलमानों को गुमराह किया है, वह शक ही था जिस के कारण अक्सर मुसलमान गुमराह हो गये।

शक एक ऐसी बीमारी है जो इंसान के यक़ीन और ईमान को तबाह व बरबाद करदेती है और जब तक इंसान के अंदर शक रहता है उस समय तक इंसान कोई भी आध्यात्मिक तरक़्क़ी नहीं कर सकता है।

 


14. बेहारुल अनवारः 51/147

15. बेहारुल अनवारः 94/147

 

 

 

    Visit : 3280
    Today’s viewers : 117558
    Yesterday’s viewers : 242836
    Total viewers : 169718739
    Total viewers : 124936420