حضرت امام صادق علیہ السلام نے فرمایا : اگر میں ان(امام زمانہ علیہ السلام) کے زمانے کو درک کر لیتا تو اپنی حیات کے تمام ایّام ان کی خدمت میں بسر کرتا۔
2. दुआ और ख़ुदा से राज़ व न्याज़

2. दुआ और ख़ुदा से राज़ व न्याज़

ख़ुदा से दुआ करने से हमारे अंदर यक़ीन पैदा होता है और उसमें इज़ाफा होता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने “ मारूफा ” नामी ख़ुत्बे में फ़रमाते हैं:

عباد اللہ سلو اللہ الیقین

ऐ खुदा के बन्दो ! ख़ुदा से सवाल करो कि वह तुम्हें यक़ीन इनायत फ़रमाए।(21)

इस आधार पर यक़ीन पैदा करने के लिए एक रास्ता ख़ुदा से दुआ करना भी है। और यह बात अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की हदीसों में भी सराहत के साथ बयान हुई है जैसे की ऊपर हम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुत्बे के एक हिस्से को बयान किया।

जब इंसान हलाकत की कगार पर हो तो यह बात संभव है कि वह अपने यक़ीन और विश्वास को खो दे। और उसका ईमान और यक़ीन कमज़ोर हो जाता है। इसी लिए अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम ने हमें इस बात का हुक्म दिया है कि हम ख़ुदा से यक़ीन को हासिल करने के लिए दुआ करें।

जो इंसान शक के बाद यक़ीन पैदा कर लेता है वह ऐसा ही है जैसे कि कोई कुफ़्र के बाद दोबारा ईमान ले आए और उसे नया जीवन मिल जाए।

ख़ुदा वन्दे आलम क़ुर्आन मजीद में फ़रमाता हैः

اومن کان میتاً فاحییناہ و جعلنا لہ نوراً یمشی بہ فی الناس کمن مثلہ فی الظلمات لیس بخارج منھا

क्या वह शख़्स जो मुर्दा (काफ़िर) था, पस हमने उसको ज़िन्दगी (हेदायत) दी। और उसके लिए एक नूर क़रार दिया जिस के सहारे वह लोगों के बीच में चलता है, तो क्या उसकी मिसाल उस इंसान की तरह है जो अंधेरों में हो और उससे मुक्ति भी ना पा सकता ?(22)

यह आयत उन लोगों के लिए है जो शक के अंधेरे से निकल कर यक़ीन के नूर में प्रवेश होते हैं। जिस तरह शक दिलों को सयाह बनाती हैं उसी तरह यक़ीन दिल को नूरानी करता है।

हज़रत इमाम-ए-मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:

لا نور کنور الیقین

यक़ीन के नूर जैसा कोई भी नूर नहीं है।(23)

जो लोग शक में पड़े हुए हों क्या वे लोग उन लोगो की तरह है जिनके दिलो में यक़ीन ने घर बनाया हुआ है ?

दिल में यक़ीन पैदा करने के लिए ख़ुदा से दुआ करें कि ख़ुदा हमारे दिल को यक़ीन के नूर से मुनव्वर करें क्योंकि अगर यक़ीन पक्का होगा तो इंसान ज़िन्दगी की सख़्त से सख़्त परीक्षा में भी पास हो जाएगा। और उसके यक़ीन में भी इज़ाफ़ा होगा।

पक्का यक़ीन उस सूरत में प्राप्त हो सकता है कि जब ख़ुद इंसान का इरादा मज़बूत हो और उसके ईरादे में किसी भी तरह की कम्ज़ोरी ना पायी जाती हो।

नमाज़-ए-ज़ोहर की ताक़ीब में इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया हैः

اسألک حقایق الایمان و صدق الیقین فی المواطن کلھا

ख़ुदाया ! मैं हर हाल में तुझ से सच्चे ईमान और यक़ीन की भीख माँगता हूँ।(24)

इस रेवायत में इस बात को बयान किया गया है कि इंसान को हर हाल में ख़ुदा से सच्चे ईमान और यक़ीन के बारे में दुआ करते रहना चाहिए ताकि ज़िन्दगी के सख़्त से सख़्त इम्तेहान में भी इंसान के क़दम ना लड़खड़ाएँ और ख़ुदा पर उसके यक़ीन में कोई कमी ना आए। ऐसे यक़ीन को पाना आसान नहीं है बल्कि ऐसे यक़ीन को पाने के लिए ख़ुदा से दुआ करना चाहिए और उससे ईमान और यक़ीन की भीख माँगना चाहिए क्योंकि मोकम्मल यक़ीन ख़ुदा के अवलिया की सिफ़त है जो हर किसी को नसीब नहीं होती है।

 


21. बेहरुल अनवारः 77/293

22. सूरए अनआम, आयत न0. 122

23. बेहारुल अनवारः 78/165

24. बेहारुल अनवारः 86/71

 

 

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