حضرت امام صادق علیہ السلام نے فرمایا : اگر میں ان(امام زمانہ علیہ السلام) کے زمانے کو درک کر لیتا تو اپنی حیات کے تمام ایّام ان کی خدمت میں بسر کرتا۔
दीन, यानी ज़िंदगी

दीन, यानी ज़िंदगी

दुनिया के बहुत से लोग दीन के जीवन दाता क़ानून को नहीं जानते हैं। वह यह नहीं जानते हैं कि अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम ने समाज के तमाम पहलुओं का ध्यान रखा है और वह लोगों की तमाम इच्छाओं को जानते हैं।

मगर कुछ लोग हैं जो दीन को सिर्फ़ कुछ अहकामात का संग्रह समझते हैं और ऐसा इसलिए है कि वह लोग अपने ही बनाए हुए दीन को अस्ल दीन समझते हैं और अस्ल दीन से उनका कोई सम्बंध नहीं होता है। अगर कोई अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम का चाहने वाला ऐसी बात कहे तो इस का मतलब यह है कि वह पूरी तरह से दीन और इस्लाम को नहीं जानता है और अगर जानता भी है तो उस को समझ नहीं सका है। वरना अगर कोई दीने इस्लाम को सही तरह से समझ ले तो फिर वह ऐसी बात नहीं करेगा। क्योंकि दीन का मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि वह आज की तरक़्की और नयी-नयी इजाद (अविष्कार) से लाभ ना उठाये बल्कि हर चीज़ की तरक़्क़ी दीन की छाया में ही उजागर होती है ।

हम आपके लिए एक मिसाल बयान करेंगे ताकि यह साबित हो जाए कि दीन कभी भी तरक़्क़ी का विरोधी नहीं था बल्कि इस्लामी हुकूमत ख़ुद तरक़्क़ी के लिए हमेंशा आगो आगे दिखाई देती हैः

आप हज़रत सुलैमान की दीनी हुकूमत के बारे में क्या जानते हैं ?

क्या हज़रत सुलैमान ने जो इबादतगाह बनवाई थी और आज भी उस के निशान बाक़ी हैं जिसको आज तक कोई समझ ही नहीं पाया, क्या उसके बारे में कोई भी मोकम्मल इल्म हासिल कर सका है ?

इसका उत्तर जानने के लिए यह वाक़ेआ मुलाहेज़ा करें।

तक़रीबन दो सौ साल पहले “ बन्यामीन फ़रेंकलन ” ने बिजली को रोकने का आला बनाया (वह आला कि जिससे घर को या महलों को शार्ट सर्किट से सुरक्षित रखा जाए।) यह एक सत्य है कि जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है।

और यह भी एक सत्य है कि जनाबे सुलैमान नबी की इबादत गाह भी चौबीस बिजली रोकने वाले आले से बनाई गई थी, और इबादतगाह को हरगिज़ शार्ट सर्किट का खतरा नहीं था ।

“ फ़रानसू आरागू ” ने अठारवीं सदी में इस रहस्य का पता लगाया और इस तरह लिखाः

जनाब-ए-सुलैमान नबी की इबादतगाह की छत को बहुत ही सावधानी से बनाया गया था, और उस को मोटे-मोटे चमड़ों से छिपाया गया और फिर पूरी छत को फ़ौलाद से बनाया गया। लोग कहते हैं कि छत को इन सब चीज़ों से इसलिए बनाया गया था कि उस पर पक्षी ना बैठें। ईबादत गाह के सामने एक हौज़ था कि जिसमें हमेशा पानी भरा रहता था। अब हमारे पास ऐसी दलीलें हैं कि जिनसे यह पता चलता है कि यह बिजली रोकने वाला किसी हेदायत करने वाले की हेदायत से चलता है और दिलचस्प बात यह कि अब तक हम ऐसी चीज़ों से भी पूरी तरह लाभ नहीं उठा सके हैं और जनाब-ए-सुलैमान की वह इबादत गाह हज़ारों साल पहले बनी थी और आज तक है।

अब सवाल यह पैदा होता है कि जनाब-ए-सुलैमान नबी की इबादत गाह बनाने वाले इन्जीनियर इस रहस्य को जानते थे मगर उन्हों ने किसी को क्यों नहीं बताया ?

जैसा कि आप ने ग़ौर किया कि उन लोगों ने इस बात को स्वीकार किया है की अब तक हम उसके रहस्य को नहीं जान सके हैं।(14)

यह हज़रत सुलैमान नबी के ज़माने की इल्मी और सनअती उन्नति की एक छोटी सी मिसाल थी। यह इस बात की दलील थी कि दीन उन्नति और प्रगति का विरोधी नहीं है।

ऐसी और भी बहुत सी मिसालें मौजूद हैं। और हज़रत सुलैमान नबी के ज़माने में ऐसी बहुत सी चीज़ें वजूद में आयीं जिनको इंसान आज तक नहीं समझ सका है। कुर्आन करीम की आयात और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की हदीसों में यह विस्तार से बायान हुआ है।

इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के राज्य में ऐसी ही उन्नति होगी कि जिसको आज का इंसान सोच भी नहीं सकता, ख़ास कर वह लोग जो कि अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के दर से वाबस्ता नहीं हैं।

उस ज़माने में टेक्नोलॉजी अपनी चरम सीमा पर होगी। हमें चाहिए कि हम ख़ुदा वन्दे आलम से उस बा बरकत ज़माने के जल्द जल्द से आने की प्रार्थना करें और अपने आप को भी उस महान दिन के लिए तैय्यार करें।

और यह भी जान लें कि इंसान के पैदा करने का मक़सद क़त्ल, दहशतगर्दी, ज़ुल्म व फ़साद और लोगों पर अत्याचार करना नहीं है बल्कि इलाही और न्यायिक राज्य को बनाने की कोशिश करना और उस को बाक़ी रखना हैं। मगर अब तक ज़ालिमों ने उसको बनने नहीं दिया।

हम ख़ुदा वन्दे आलम से दुआ करते हैं कि ख़ुदा ज़हूर की तमाम रुकावटों को ख़त्म कर दे और जल्द से जल्द  इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ का न्यायिक राज्य क़ायम करदे और हमें इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के नोकरों में शुमार फ़रमा।                     (आमीन)

 


(14) तारीख़े ना शनाख़तए बशरः 11

 

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