हमारा लोगो अपनी वेबसाइट या वेबलॉग में रखने के लिए निम्न लिखित कोड कापी करें और अपनी वेबसाइट या वेबलॉग में रखें
इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ)

इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के लिए नमाज़े इस्तेग़ासा

 

(इस्तेग़ासा : यानी किसी को पुकारना और बुलाना)

 

कुछ दिन पहले “ सहीफए मेहदिया ” को पढ़ रहा था कि एक नमाज़ के बारे में पढ़ा जो इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) से संपर्क के लिए है अगर उस को बयान ना करुं तो यह सही ना होगा और वह इस प्रकार है :

जो कोई भी मनोकामना रखता है वह बृहसपतिवार और शुक्रवार को खुले आसमान के नीचे नंगे पैर 2 रेकात नमाज़ पढ़े और उस के बाद अपने हाथों को आसमान की तरफ उठाये और 595 बार यह पढ़े :

या हुज्जतुल क़ाएम (یا حجۃ القائم)

उस के बाद सजदा करे और 70 बार कहे :

या साहेबज़्जमान अग़ेसिनी (یا صاحب الزمان اغثنی)

और अपनी मनोकामना इमाम से बयान करे ।

यह नमाज़ हर महत्वपूर्ण काम के लिए है अगर पहली बार पढ़ने से काम ना बने तो दोबारा पढ़े अगर उस के बाद भी मनोकामना पूरी ना हो तो तीसरी बार पढ़े. ईश्वर ने चाहा तो सारी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी हो गी ।

किताबे " तोहफतुर्रज़वीया" के संपादक अपनी किताब मे लिखते हैं कि सय्य्द मोहम्मद अली जवाहेरी हॉयरी ने यह हम से कहा कि इस नमाज़ को एक काम के लिए पढ़ा तो उसी रात इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) को सपने में देखा कि मैंने अपनी मनोकामना को इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के समक्ष बयान किया तो ईश्वर ने उनके द्वारा हमारी मुश्किल को हल कर दिया ।

अब मैं कहता हूँ कि मैंने भी इस नमाज़ को पढ़ा तो जो काम हल नही हो रहा था वह हल हो गया कि जिस के बारे में मैंने सोचा भी नहीं था ।

 

यात्रा : 3243
आज के साइट प्रयोगकर्ता : 131159
कल के साइट प्रयोगकर्ता : 315641
कुल ख़ोज : 156170560
कुल ख़ोज : 113752300