किताबे ’’ सहीफ़ये मेहदीया ‘‘ इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) को पहचानने के लिए एक बेहतरीन किताब
सहीफ़ए मेहदीया एक ऐसी किताब है कि जिस के लेखक जनाब सय्यद मुरतज़ा मुजतहेदी सीसतानी हैं और इस्लामी नामी संस्था ने उसका फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया है।और यह किताब नवीं बार “ अलमास ”नामी प्रकाशन ने छापा है।
आगे हम इस किताब के बारे में वर्णन करेगें कि यह किताब दुआ और ईबादते ख़ुदा और ज़ियाराते इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) का संग्रह है कि जो इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के द्वारा हम तक पहुँची हैं या इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के बारे मे हैं ।
इस के लेखक इस किताब के बारे में इसके प्राक्कथन मे इस तरह लिखते हैः
इस किताब में हम ने उन ज़ियारात और दुआओं को इकठ्ठा किया है जो विश्वसनीय किताबों में है मगर हम यह नही कह सकते कि हमने सारी दुआओं और जियारात को इकठ्ठा कर लिया है बल्कि हम ने प्रयास किया है कि हम इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के बारे में कुछ दुआओं और ज़ियारात का उल्लेख कर सकें क्योंकि हम ग़यबत के ज़माने में और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के ज़माने से दूरी के कारण बहुत सी दुआओं और ज़ियारात से दूर हैं कि जो हम तक नहीं पहुँची इसी तरह बहुत सी दुआएं और ज़ियारात जो इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) ने फ़रमाया है ग़यबत के ज़माने से दूरी और हमारी लापरवाही के कारण हमें नहीं मिल सकी ।
मगर वह सुंदरता जो इस किताब मे देखने को मिलती है वह लेखक का प्राक्कथन है कि जो लगभग 100 पृष्ठ है कि जिसमें उनहोंने कुछ महत्तपूर्ण बातें जैसे कि ज्ञान, स्वाभाव, इतिहास के बारे में लिखा है और ऐसे ही आदाब-ए-दुआ को अक़्ल व किताबों के द्वारा लिखा है और दुआ के वाजिब और मुस्तहब होने और दुआ करने के लिए उसका आरम्भ करने को बयान किया है और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के उच्चतम पद को बयान किया है।
किन्तु वह चीज़ कि जो इस किताब मे सुन्दरतम है वह यह है कि इस किताब के लेखक ने इस के प्राक्कथन में लिखा, वह संक्षिप्त और लाभकारी है और हर भाग में उसी की उचित्ता से दुआ को लिखा है और कुछ चमत्कार को बयान किया है ।
दुआ, परेशानी (बला) व मुसीबत को दूर करने वाली है।
रसूले ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहे व आलेहि वसल्लम ने फ़रमायाः
الا ادلکم علی سلاح ینجیکم من اعدائکم و یدرا رزقکم ؟قالوا بلیٰ یا رسول اللہ ،قال تدعون ربکم باللیل و النھار فان سلاح المومن الدعاء
अलकाफ़ीः2/468
क्या तुम लोग यह चाहते हो कि मैं तुम को ऐसे हथियार के बारे में बताऊँ कि जो तुम्हारी, तुम्हारे दुश्मन से रक्षा करे और तुम्हारी रोज़ी रोटी बढ़े ? लोगों ने कहा हाँ या रसूलल्लाह । आप ने फ़रमाया कि अपने ईश्वर से रात मे और दिन में दुआ करो इस लिए कि दुआ मोमिन का हथियार है ।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः
الدعاء ترس المومن،و متی تکثر فرع الباب یفتح لک
काफ़ीः2/468
दुआ मोमिन की ढ़ाल है, और जब कोई दरवाज़ा बहुत ज़्यादा खटखटाया जाता है तो अंततः वह खुल ही जाता है ।
इस किताब के लेखक आदाबे दुआ के बारे में लिखते हैं किः
दुआ का मतलब यह होता है कि अपने सारे काम काज चाहे वह वाह्य हो या आंतरिक । अतः अगर आदाबे दुआ को ना पा नका तो उसको पूरा होने की आशा ना करे और ईश्वर हर वाह्य और आंतरिक का जानने वाला है अतः हो सकता है की तुम ईश्वर से कोई ऐसी चीज़ मांगो कि जो ईश्वर को आंतरिक मे मालूम हो कि तुम्हारे लिए लाभदायक ना हो ।
अगर ईश्वर ने हमें दुआ का हुकम ना दिया होता और हम ईश्वर को दिल से पुकारें और ईश्वर उस को स्वीकार कर ले तो यह उस की हम सब पर कृपा है अतः उसने दुआ का हुक्म दिया है और उस को स्वीकार करने के लिए भी कहा है तो जो दुआ को उस के तमाम आदाब के साथ करे तो फिर उसकी दुआ कैसी होगी !?
इसी तरह इस किताब के प्रक्कथन मे लिखा है किः
जनाब सय्यद इबने ताऊस रहमतुल्लाह अलैह किताबे " जमालुल उस्बू " में लिखते हैं कि यह बात बहुत ज़्यादा बयान हुई है कि हमारे धर्म गुरुओं ने इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर के लिए हर रात दिन दुआ की है और यह बात पहले ज़माने में प्रचलित थी और इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर के लिए दुआ करना सब से अवश्यक था ।
इस बात से यह पता चलता है कि इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर की दुआ करना सारे मुस्लमानों और मोमिनों का तरीक़ा रहा है । इसलिए नमाज़े ज़ोहर की ताक़ीब में आया है कि इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने सबसे ज़्यादा जिस दुआ के बारे में ताकीद की है वह इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर की दुआ है ।
और नमाज़े असर के जो रात और दिन के आमाल बताए गए हैं उसमें भी यह लिखा है कि इमाम-ए-काज़िम अलैहिस्सलाम ने सबसे बेहतरीन दुआ इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर की दुआ कहा है और आपका यही तरीक़ा था ।
अगर कोई इस बात पर दलील चाहता है तो इमाम-ए-सादिक़ अलैहिस्सलाम और इमाम-ए-काज़िम अलैहिमस्सलाम के मरतबे और मक़ाम को इस्लाम और मुस्लमानो के बीच जानने के बाद किसी भी दलील की ज़रूरत नही रह जाती है ।
सय्यद ताऊस रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी बिरादरी और धार्मिक भाईयों के लिए दुआ करने के सवाब (पुण्य) को बयान करने के बाद लिखते हैं किः
जब अपनी बिरादरी और धार्मिक भाईयों के लिए दुआ करने का इतना सवाब (पुण्य)है तो फिर उस महान हस्ती के लिए के जिस के कारण यह दुनिया बनाइ गई है और जिसके बारे में हमारा यह मानना है कि अगर इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ न होते तो ईश्वर हमें भी पैदा ना करता तो उस के ज़हूर के लिए और उस के लिए दुआ करने में कितना सवाब और पुण्य होगा ।
यही वह इमाम है कि अगर यह न होता तो न उस के ज़माने में और न तुम्हारे ज़माने में कोई पैदा तक ना होता। सही इमाम कारण हैं तमाम चीज़ों के बाक़ी रहने की और उन तमाम नेकियों और नेमतों के कि जो ईश्वर की तरफ से हम तक पहुँचती हैं ।
किसी के लिए भी दुआ करने से पहले इस महान हस्ती (इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के लिए दुआ करो। और अपने दिल और अपनी ज़बान को इस महान हस्ती के लिए दुआ करने में एक करदो ।
ख़बरदार यह हरगिज़ ना सोचना कि यह जो मैं तुम को ताकीद कर रहा हूँ कि इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के लिए दुआ करो तो वह महान हस्ती तुम्हारी दुआओं की मोहताज है। हरगिज़ ऐसा नहीं है और अगर तुमने ऐसा सोचा तो समझ लेना कि तुम अपने अक़ीदे में कमज़ोर और बीमार हो । मेरा यह सब कहने का मक़सद यह है कि तुम यह बात जान लो कि वह अहम ज़िम्मेदारी जो तुम्हारे ऊपर है वह तुमको बताऊँ और तुम्हारे लिए यह प्रकाशित होजाए कि इस में तुम्हारा ही फ़ायदा है ।
अगर तुम अपने और अपने घर वालों और अपने दोस्तों के लिए दुआ करने से पहले इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के लिए दुआ करोगे तो तुम ख़ुद यह बात समझ लोगे कि ईश्वर के पास दुआ क़बूल होने का दरवाज़ा तुम्हारे लिए खुल चुका है इस लिए कि तुम ने अपने गुनाहों (पापों) के कारण वह दरवाज़ा बन्द कर लिया था मगर जब तुम ने इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के लिए दुआ की तो वह दरवाज़ा दोबारा तुम्हारे लिए खुल गया और जब तुम उस दरवाज़े मे प्रवेश कर जाओगे तो फिर तुम जो दुआ चाहो अपने लिए, अपने घर वालों के लिए , और अपने दोस्तों के लिए ईश्वर से माँग सकते हो ।
इस तरह ईश्वर की कृपा आप पर होगी तुम ने ईश्वर तक अपनी दुआ (प्रार्थना) पहुंचाने का रास्ता ढ़ूँढ़ लिया है ।
हो सकता है कि तुम यह बात कहो की फलाँ व्यक्ति को मैं जानता हूँ कि जो धार्मिक उस्ताद है वह भी इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के लिए दुआ नही करता है और मैं अच्छी तरह से जानता हूँ कि वह लोग इस काम को नहीं करते हैं और इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ की तरफ़ से बिल्कुल लापरवाह हैं और उनकी तरफ़ से लापरवाही करते हैं।
तो इस सवाल के जवाब में हम कहेंगे किः
मैं ने जो तुमसे कहा है वह तुम करो इसलिए की यह बात साफ़ है कि जो कोई भी इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ की तरफ़ से लापरवाह है उनको भूल गया है या उन को छोड़ दिया है ख़ुदा की शपथ खाकर कहता हूँ कि वह धोके में और रुस्वा होने वालों में जी रहा है ।
इस किताब के लेखक ने प्रक्कथन के बाद दुआओं लिखने के बाद इस किताब के 12 भाग किए हैः
पहले भाग में नमाज़।
दुसरे भाग में क़ुनूत।
तीसरे भाग में नमाज़ के बाद की दुआएँ।
चौथे भाग में हफ्ते भर की दुआएँ।
पाँचवें भाग में महीने भर की दुआएँ।
छठें भाग में हर हफ़्ते के हर दिन की विशेष दुआएँ
सातवें भाग में इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) से संपर्क।
आठवें भाग में पत्र (अरीज़ा)।
नवें भाग में इस्तिख़ारा।
दसवें भाग में वह दुआएँ कि जो इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) ने अपने पूर्वजों से बयान किया है
ग्यारहवें भाग में ज़ियारात
बारहवें भाग में इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के प्रतिनिधियों की ज़ियारात
इस किताब के अंत में इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के बारे मे कुछ बातें और नमाज़े शब, ज़ियारते आशूरा, ज़ियारते जामेअ-ए-कबीरा, ज़ियारते अमीनुल्लाह, ज़ियारते वारिसा को लिखा है ।
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