حضرت امام صادق علیہ السلام نے فرمایا : اگر میں ان(امام زمانہ علیہ السلام) کے زمانے کو درک کر لیتا تو اپنی حیات کے تمام ایّام ان کی خدمت میں بسر کرتا۔
स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण वाक़ेआत

स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह

अलैह के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण वाक़ेआत

स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ऐसे लोगों में से थे जिनके दिल की आँखें खुल चुकी थीं और वह ऐसे दृश्य देख सकते थे जिनको कोई दूसरा नहीं देख सकता था और इस बात को स्पष्ट करने के लिए हम स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी के कुछ वाक़ेआल बयान करेंगें।

शैख़ स्वर्गीय मोहद्दिसे नूरी किताबे दारुस्सलाम में शैख़ स्वर्गीय मुल्ला तक़ी से बयान करते हैं कि जो स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह के शिष्यों में से हैं।

मैं एक यात्रा में स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह के साथ था, और स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह जिस गिरोह में थे हम लोग भी उनके साथ थे, यात्रा में एक ऐसा व्यक्ति भी था जो किसी और गिरोह में था, मगर वह भी हम लोगों के साथ हो गया। एक बार स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने उसको देखा और अपनी तरफ़ बुलाया। चुँकि स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने उसको बुलाया था तो वह उनके पास आया और उनके हाथों को चूमा, फिर स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने उसके ख़ानदान के एक-एक व्यक्ति के हाल चाल के बारे में विस्तार से पूछा।

उस व्यक्ति ने कहा कि सब ठीक-ठाक हैं।

जब वह व्यक्ति चला गया तो हमने स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह से पूछा कि उसकी वेश-भूषा से नहीं लगता कि वह इराक़ी है।

स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया:

हाँ ! वह इराक़ी नहीं था, बल्कि वह यमन का रहने वाला था।

हमने कहा आप तो कभी यमन गये नहीं फिर किस तरह आप यमन की भाषा जानते हैं ? और किस तरह आप उसके परीवार वालों के बारे में जानते हैं जिनके हाल-चाल के बारे में आपने उस व्यक्ति से पूछा  ?

स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने कुछ देर सोच विचार के बाद उत्तर दिया:

ख़ुदा की कृपा : इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है अगर तुम लोग मुझसे धरती के एक-एक बीत्ते (बालिश्त) के बारे में प्रश्न करो तो मैं तुमको सबके बारे में उत्तर दूँगा और मैं सबको पहचानता हूँ।

स्वर्गीय मोहद्दिसे नूरी फ़रमाते हैं कि स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह की बात की पुष्टि इस वाक़ेए से होती है कि नजफ-ए-अशरफ़ में सारे पवित्र स्थल जैसे, मस्जिदे कूफ़ा, मस्जिदे हन्नाना, जनाबे कुमैल की क़ब्र, हज़रत अली अलैहिस्सलाम का घर, नबी जनाब-ए-हूद और जनाब-ए-सालेह अलैहेमस्सलाम की कब्र, और इन सबको स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने एक-एक बित्ता मोअय्यन किया वरना उस ज़माने से लेकर आज के ज़माने तक कुछ भी निशान बाक़ी ना रहता।

उस ज़माने के सारे धर्म गुरु स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह को बातों को मानते थे और किसी को भी उनकी बात पर कोई आपत्ति नही होती थी।

वादिउस्सलाम में हज़रत हूद और सालेह अलैहेमस्सलाम(13)की जो पहलें कब्रें थीं उनके बारे में स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया कि यह उनकी क़ब्र नहीं थी फिर एक दूसरे स्थान पर स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने बताया और आज वही जगह है जो आज सब जवान और बूढ़े लोगों के लिए ज़ियारत का केंद्र बना हुआ है।

किताबे कूफ़ा में लिखा है कि अल्लामा सय्यद मोहम्मद मेहदी नजफ़ी कि जो स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह के नाम से प्रसिद्ध हैं यह किताब उनकी बची हुई किताबों में सबसे महत्वपूर्ण है। और उनमें एक मुक़द्दस मस्जिदे कूफ़ा है कि जिसको पुराने ज़माने में बहुत कम लोग जानते थे और दीने इस्लाम को अच्छी तरह जानने वाले बहुत कम लोगों को मोलूम था इस कारण स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने उन पवित्र स्थल को निश्चित करने की ज़िम्मेदरी अपने कंधों पर ली। उसमें कुछ निशानात और मेहराब बनवाए, मेहराबे नबवी में क़िबला को निश्चित करने के लिए पत्थरों का एक स्तम् (सतून) भई बनवाया। यह एक ऐसा चिन्ह है कि जो आज भी {रख़मा}(14) के नाम से पहचाना जाता है।

स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह के चमत्कार में एक यह भी है कि मस्जिदे सहला में इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु रजहुश्शरीफ के लिए एक स्थान है जिसको स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने ही निश्चित किया था और लोग इस स्थान को नहीं जानते थे, स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह ने हुक्म दिया कि फ़लाँ स्थान पर एक गुम्बद बनाया जाए ताकि उस स्थान का पता सबको चल सके।(15)

अल्लामा शैख़ इराक़ीइन, शैख़ अबदुल हुसैन तेहरानी जब पवित्र स्थल की ज़ियारत के लिए इराक़ गए तो उन स्थानों को दोबारा बनवाने का इरादा किया। मस्जिदे कूफ़ा में जनाब-ए-मुख़तार की क़ब्र के बारे में खोज की ताकि उसको भी दोबारा से बनवाया जा सके। उनके पास क़ब्र की सिर्फ़ और सिर्फ़ एक निशानी थी कि जनाब-ए-मुख़तार की क़ब्र जामा मस्जिद से मिले हुए आंगन मुस्लिम इब्ने अक़ील में हानी इब्ने उरवा के हरम के सामने है।

अतः उन्होंने उसे खोदा तो वहाँ हमाम के लक्षण मिले जिससे यह सपष्ट हो गया कि यहाँ जनाब-ए-मुख़तार की क़ब्र नहीं है और उसके लक्षण ख़त्म हो चुके हैं। लेकिन अभी तक शैख़ उसकी खोज में थे कि स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह के पुत्र ने उनसे कहा कि जब भी स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह मस्जिदे कूफ़ा के पूरबी दीवार से गुज़रते कि जो अब जनाब-ए-मुख़तार की कब्र है तो कहते कि जनाब-ए-मुख़तार के लिए एक सूरए फ़ातिहा पढ़ लें। और फ़िर स्वर्गीय सय्यद बहरुल उलूम रहमतुल्लाह अलैह सूरए फ़ातिहा पढ़ते।

शैख़ ने हुक्म दिया कि उसको खोदा जाए और उनके हुकम को माना गया और उस जगह को खोदा गया तो वहाँ से एक पत्थर निकला जिस पर लिखा हुआ था कि यह मुख़तार इब्ने अबी ओबैदा सक़फी की क़ब्र है। अतः यह स्पष्ट हो गया कि यहां जनाब-ए-मुख़तार की कब्र है।(16)

 


(13) गुलज़ारे अकबरीः 358

(14) तारीख़े कूफ़ाः 72

(15) तारीख़े कूफ़ाः 73

(16) तारीख़े कूफ़ाः 112

 

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