ज़ियारते आले यसीन से शिक्षा
इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ की महत्वपूर्ण ज़ियारात में एक महत्वपूर्ण ज़ियारत है, ज़ियारते आले यासीन, कि जिनमें एतेक़ाद और माआरिफ़ के मसाएल बयान हुए हैं। इसके अलावा उसमें इंसानों की सफ़लता का रहस्य भी बयान हुआ है। जो भी इस ज़ियारत को और उसके बाद वाली दुआ को पढ़ता है, वह ख़ुदा से चाहता है कि उसे बुलंद दरजे तक पहुँचा दे। अगरचे सम्भव है कि दुआ पढ़ने वाला दुआ तो पढे मगर उसकी महानता और महत्व के बारे में ना जानता हो।
हम यहाँ इसी सिलसिले में एक मिसाल बयान करेंगेः
ज़ियारते आले यसीन के बाद पढ़ी जाने वाली दुआ में हम ख़ुदा से यह कहते हैं किः
‘‘وفکری نور النیات،وعزمی نور العلم’’
मेरी सोच-विचार को इरादे (संकल्प ) और मेरे इरादे को इल्म का नूर दे।(13)
सम्भव है कि हम ने यह दुआ अब तक सैंकड़ों बार पढ़ी हो, लेकिन अभी तक हमने अपनी दरखास्त और इस दुआ की महानता पर ध्यान ना दिया हो।
यह दुआ हमें यह शिक्षा देती हैः
बुद्धीमान वह इंसान हैं कि जो अपनी अंधेरी सोच-विचार से नेजात पाकर इरादे की शक्ति का मालिक बन जाता है और उसका नफ़्स उसके इरादे और संकल्प का हुक्म माने। और जिनके पास इरादा और संकल्प होता हो उन के पास इल्म का नूर होता है। और उसका दिल इल्म के नूर से प्राकाशमयी हो जाता है।
ज़हूर का ज़माना वह ज़माना होगा जब संसार के हर इंसान की हर इच्छा पूरी हो जाएगी और इंसानो में और उनके सोच-विचार में परिवर्तन होगा।
उस ज़माने में इंसान इल्म और मआरिफ़ के रास्ते को अपनाये गा। और उसी पर चलता रहेगा।
अब यह बात साफ़ है कि जब इंसानो में परिवर्तन होगा तो इससे इल्म में भी उन्नति होगी।
(13) सहीफ़ए मेहदीयाः 567
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