امام صادق عليه السلام : جيڪڏهن مان هن کي ڏسان ته (امام مهدي عليه السلام) ان جي پوري زندگي خدمت ڪيان هان.
5 TAHLILE REWAYAT

रेवायत में ध्यान देने वाली बात यह है कि पैग़मबरों के ज़माने से मासूमीन के ज़माने तक और इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से पहले के ज़माने तक इल्म एक ही था और एक जैसा था और उन तमाम ज़मानों में इल्म दो शब्दों से ज़्यादा नहीं बढ़ सका और ना ही ज़हूर से पहले बढ़ सकेगा। क्योंकि इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलेहिस्सलाम के फ़रमान के अनुसारः

1. सारे पैग़मबर जो भी इल्म लेकर आए वह दो शब्दों से ज़्यादा नहीं हैं।

2. इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के ज़माने तक लोग दो शब्दों से ज़्यादा कुछ नहीं जानते थे।

3. जब इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ ज़हूर करेंगे तो 25 शब्द और उजागर करेंगे और उन 2 शब्दों के अलावा 25 शबदों को भी लोगों के बीच फैलाएंगे।

इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के ज़माने में और इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से पहले तक इल्म पैगमबरों के ज़माने से ज़्यादा विस्तृत्व होगा।

अब रेवायत से हट कर अगर बात करें तो यह कहना पड़ेगा कि इमाम के कहने का अर्थ कुछ और था जिसको रावी (रेवायत व हदीस बयान करने वाले) समझ नहीं पाये।

क्योंकि यह बात तो साफ़ है कि रसूले ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और इमामों ने ऐसे उलूम लोगों को दिये और बताए कि जो उनसे पहले किसी भी पैग़मबर ने नहीं बयान किए थे।

हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और उनके प्रतिनिधी जो उलूम लाए, क्या यह वही इल्म था कि जिनको पहले के पैग़मबरों ने लोगों के लिए बयान किया और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम ने उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया था और ना ही उसमें कुछ बढ़ाया।

अगर ऐसा होता तो फिर इस्लाम, को दूसरे धर्म पर क्या बर्तरी (फ़ज़ीलत, बड़ाई) होती ?

कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करता है कि हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम का इल्म, जो नबी और पैग़मबर पहले आए उन्हीं का इल्म था अतः यह कहना पड़ेगा कि इस रेवायत में एक ऐसा नोक़्ता भी है कि जिसे जानने के लिए सोच-विचार की आवश्यकता है।

अब अगर रसूले ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम और इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से पहले तक यह मान लें कि सारे इल्म एक ही जैसे हैं तो फिर यह एक बहुत बड़ी गलत फ़हमी है। क्योंकि इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम और दुसरे इमामों ने जिन उलूम को लोगों के सामने बयान किये वह उनसे पहले किसी भी पैग़मबर से नहीं सुने गए थे।

इसलिए हम यह नहीं कह सकते कि सारे इल्म एक जैसे थे मगर यह कहा जा सकता है कि इल्म को प्राप्त करने के लिए जिन चीजों की आवश्यकता है वह एक हैं।

 

 

 

 

 

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