الإمام الصادق علیه السلام : لو أدرکته لخدمته أیّام حیاتی.
45 ELm nemitawanad jahan ra dark konad

ELm  nemitawanad jahan ra dark konad

2. कुछ चीज़ो को नापने के लिए पैमाने बनाए गए है। जैसे कि सेकेंड, सेंटी मीटर, मीटर, ग्राम। लेकिन कुछ चीजों को नापने का कोई पैमाना नहीं है जैसे आत्मा, नफ़्स, अक़ल।

इस तरह दुनिया वालों के सामने इसका पता नहीं लगाया जा सकता है यह तो हम कह सकते हैं कि उसके पास दिमाग़ कम है मगर यह नहीं कह सकते हैं कितना कम है ? या एक इंसान में एक किलो, या आधा किलो, या एक पाव दिमाग होता है। ऐसा कोई भी पैमाना नहीं जो इन चीज़ों को नाप या तौल सके।(35)

3. आज तक कोई भी इस बात का जवाब नहीं दे सका कि हमारे पास जो चिराग़ है उसका नूर कितना है । अगर फ़िज़िक्स के प्रोफ़ेसरों को इसका जवाब मिल जाए तो कई साल का सफ़र लमहों में तय हो जाए । संसार के रहस्य खुल कर सामने आ जाएँगे।(36)

4. हम 26 सदियों के बाद भी आज तक यूनान कि फ़िलॉस्फ़ी से पीछा नहीं छुड़ा सके हैं और आज तक वहीं का फ़ल्सफ़ा पूरी दुनिया में रायज (प्रचलित) है कोई भी उसका मोक़ाबला नहीं कर सका और ना ही उसके मोक़ाबले में कोई इल्म ईजाद कर सका।

इन बातों से कुछ नतीजा निकलता हैः(37)

1. दुनिया में प्रचलित जितने भी इल्म हैं वह एक दुसरे से मिले (सम्बंधित) हुए हैं, उसका अपस में राबेता है वह बेरब्त नहीं है। किसी भी इल्म में ग़लती सिर्फ़ उसी इल्म के लिए हानिकारक नहीं होती बल्कि दुसरे इल्म भी प्रभावित होते हैं, कि जो उससे रब्त रखते हैं।

2. ग़ैबत के ज़माने में कुछ दानिश्वर और इस तरह ग़ैबत के ज़माने से पहले, लोगों में उनका बहुत मान-सम्मान था और उनकी बातों को सब आँख बन्द करके स्वीकार करते थे, और कोई भी उनकी बातों का इंकार नहीं करता था। और पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही होता रहा है। अपने उस्ताद का ख़याल करते हुए उनके शागिर्द कभी उस्ताद की बातो का विरोध नहीं करते हैं और फ़िर उसी पर बाक़ी रहते हैं। उस्ताद का मान-सम्मान इतना ज़्यादा होता है कि कभी-कभी शागिर्द उस्ताद की ग़लती को जानते हुए भी इंकार नहीं करता है। और ना ही उनका विरोध करने की हिम्मत होती है यह सोच कर कि कहीं दूसरे लोग उसको बुरा ना कहें। और इस तरह वह अपनी सही बात भी नहीं कह पाते हैं और उस्ताद के सामने कहते हुए डरते हैं।

3. कभी कभी दूसरे धर्म अपने बेबुनियाद और ग़तल नज़रियात (दृष्टिकोण) की तरवीज के लिए, समाज में अपने मान-सम्मान का फ़ायदा उठाते हैं, यानी लोगों के बीच उनकी इज़्ज़त होती है इसलिए वह अपनी ग़लत बात भी मनवाने पर तुल जाते है और लोग उनका विरोध नहीं करते हैं। जैसे कि अरस्तू की ग़लत बात की ताईद चर्च ने की। और ऐसी बातें यानी एक ग़लत बात जो धर्म की तरफ़ से प्राचलित होती हों वह फ़िर पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है, जो कि समाज को तरक़्क़ी और उन्नति से दूर कर देती है।

4. दानिश्वरों की ग़लतियाँ और ज़ालिमों का इल्म का मिस-यूज़ करना, ऐसा इल्म दुनिया को मिसाली दुनिया और समाज को मिसाली समाज नहीं बना सकता है। बल्कि जब तक इल्म की बाग-डोर ज़ालिमों और इल्म का मिसयूज़ करने वालों के हाथों में होगी उस समय तक समाज जेहातल के अंधेरे में भटकता रहेगा।

5. जहूर के बा बरकत ज़माने में कि जब पूरी दुनिया में इल्म का बोल-बाला होगा। सब इल्म के चशमे (स्रोत) से सैराब होंगे, उस समय दुनिया में एक दीन और एक न्यायिक राज्य होगा, और सब न्यायिक राज्य में ही अपना जीवन हँसी-खुशी बिताएँगे। बातिल और ग़लत दीन इस दुनिया से मिट जाएँगे। उस समय सब पहले वालों की ग़ल्तियों से आगाह हो जाएगें। उस बा बरकत ज़माने में इल्म से भागना सम्भव नहीं होगा बल्कि सब इल्म से मोहब्बत करने वाले होंगे।

 


(35) राहे तकामुलः 5/89

(36) मग़ज़ मोताफ़िक्किरे जहान शीयाः 344

(37) मग़ज़ मोताफ़िक्किरे जहान शीयाः 112

 

 

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