امام صادق فیق پوسی کسل بیونید پقری ناکهوےنمنرونه تهوک نارےنری ژهیوگنگ مه کهوی فیق پوے چوکی بیک پاٍ
कामयाबी और नाकामी के राज़

कामयाबी और नाकामी के राज़

संभव है कि कोई सवाल करे किः किस प्रकार संभव है कि शेख़ अंसारी सदैव ज़ियारते जामे पढ़ कर इमाम के घर में प्रवेश कर जाया करते थे और अपने इमाम से बातचीत किया करते थे?

वह किस प्रकार इस स्थान तक पहुंच गए थे, जब्कि आपके छात्र ने भी इमाम ज़मान का घर देखा था लेकिन उसको यह सम्मान ना मिला, और मरहूम शेख़ ने उस से फ़रमायाः इसके बाद तुम कभी उस घर को ना देख पाओगे!

यह एक महत्व पूर्ण प्रश्न हैं जिसका उचित उत्तर दिया जाना आवश्यक है। लेकिन अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि कुछ लोग इस प्रकार के सवालों के सामने पहले से तैयार उत्तर रखते हैं, और इस प्रकार के सवाल पर फ़ौरन जवाब देते हैं किः ख़ुदा की यही इच्छा थी या ख़ुदा कुछ लोगों के रिश्तेदारी, या दोस्ती रखता है और लोगों के अमल और उनकी इच्छाओं का इस में कोई दख़ल नही है! 

इस प्रकार के जवाब जो कि अधिकतर पल्लू झाड़ने के लिए होते हैं, सही नही हैं यह ना तो उचित उत्तर हैं और ना ही किसी का मार्ग दर्शन करते हैं।

हम इस प्रश्न का उत्तर (ख़ुदा के आदेश अनुसार) इस प्रकार देंगेः

रहीम परवरदिगार ने सारे इन्सानों के रुहानी पाराकाष्ठा और मानवी तरक़्क़ी की दावत दी है, देता है, और आने पर सब की आहो भगत करता है, इसी प्रकार ख़ुदा ने भी तरक़्क़ी और पराकाष्ठा को इन्सान के अंदर पैदा किया है और इस तरह उनको पराकाष्ठा और तरक़्क़ी का निमंत्रण दिया है। और क़ुरआन में साफ़ साफ़ फ़रमाया हैः

[1] وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا

जो भी हमारी राह में कोशिश करे, हम यक़ीनन उसको अपनी राहों का मार्ग दर्शन करेंगे।

यह मेहमानों का दायित्व है कि वह ख़ुदा के निमंत्रण को स्वीकार करें और रूहानी तकामुल और मानवी तरक़्क़ी के रास्ते पर क़दम बढ़ाएं।

इसलिए यह बात साबित हैं कि हर इन्सान के अंदर तरक़्क़ी और पाराकाषठा पाई जाती है और उनको यह नेमत दी गई है, लेकिन उन्होंने उसे जमा कर रखा हैं और इस्तेमाल में नही लाते हैं। उस छोटी सोच वाले अमीरों की तरह कि जो बैंकों में अपने बैंक बैलेंस को बढ़ा कर ही ख़ुश हैं लेकिन कभी भी उस दौलत का प्रयोग नही करते हैं।

कामयाबी के लिए आवश्यक है कि अपने अंदर पाई जाने वाली ताक़तों और योग्यताओं में फ़ाएदा उठाया जाए और अपनी कमियों को दूर किया जाए, ताकि अपने बनाए हुए बड़े लक्ष्यों तक पहुंच सकें।

बहुत से लोग रूहानी और मानवी पराकाष्ठा तक पहुचने के लिए व्यक्तिगत तौर से बहुत अधिक योग्यता रखते हैं, लेकिन चूंकि इस प्रकार के कार्यों से उनका कोई लेना देना नही होता हैं इसलिए इस प्रकार की योग्यताओं से कोई लाभ नही उठाते हैं और दुनिया से चले जाते हैं और उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। पुराने ज़माने के उन अमीरों की भाति जो अपनी दौलत और संम्पत्ति के बचाने के लिए ज़मीन में दफ़्न कर दिया करते थे और ना ख़ुद उसके कोई लाभ उठाते थे और ना ही उनकी औलाद।

इस बात को साबित करने के लिए कि कुछ लोगों के अंदर रूहानी ताक़त बहुत अधिक होती है और समझने की ताक़त भी आशचर्य जनक होती हैं, और उन्होंने इस ताक़त को किस प्रकार हासिल किया हैं, मरहूम शेख़ हुर्रे अमेली जो कि शिया संप्रदाय के धर्म गुरूओं में से थे, का एक कथन बयान करते हैं, वह कहते हैः

यह बात स्पष्ट है कि देखना और सुनना और इसी प्रकार के दूसरे कार्य सीधे आँख, कान या इसी प्रकार शरीर के दूसरे अंगों से नही होता है बल्कि यह सब रूह के लिए साधन हैं, जिनके माध्यम से आत्मा देखती और सुनती और दूसरे कार्य करती है। और चूंकि इन्सान की आत्मा शक्तिशाली नही है इसलिए उसका देखना, और सुनना भी माद्दी चीज़ों और उनकी विशेषताओं तक सीमीत है।

इसीलिए केवल माद्दी चीज़ों को देखता है, और रूहानी मसअलो की नही समझ सकता है, लेकिन अगर इन्सान की आत्मा को शक्ति दी जाए और इबादत और वाजिबात को अंजाम देने, और हराम चीज़ों से बचने से ख़ुदा से क़रीब हुआ जाए तो उसकी आत्मा शक्तिशाली हो जाएगी। तब वह अपनी आँखों से वह चीज़ें देखेगा जो दूसरे नही देख पाते और अपने कानों से वह सुनेगा जो दूसरे नही सुन सकते।

यह ताक़त और शक्ति लोगों में अलग अलग होती है, जिस प्रकार उनकी ख़ुदा से क़ुरबत भी एक जैसी नही होती, जो भी इबादत और जिहाद के माध्यम से ख़ुदा से अधिक से अधिक नज़दीक होगा उसके मानवी हालात और आत्मा अधिक शक्तिशाली होगी, और उन मसअलों को समझने में भी उन लोगों से शक्तिशाली होगें जिनके आँख और कान इनकी तरह नही है[2]

इस पूरे विवरण से साबित हो गया कि क्यों मरहूम शेख़ अंसारी जैसे लोग इस प्रकार की नेमतों को हासिल कर सकते हैं लेकिन दूसरे लोग इस प्रकार की शक्ति नही रखते हैं और उनकी आँखे इस प्रकार के दृश्य नही देख सकती।

आपके अंदर इन्तेज़ार की हालत उसके वास्तविक मानी में इस प्रकार के इन्आम लाती है।

दीदए बातिन चू बीना मी शवद

आनचे पिनहान अस्त पैदा मी शवद

वह इन्तेज़ार करने वाले जो इन्तेज़ार के रास्ते में जल कर कुंदन हो गए हैं, वह शारीरिक इच्छाओं से दूरी और आत्मा की तरक़्क़ी से अपने शरीर के अधिकार से बाहर निकल जाते हैं, और उनकी शारीरिक इच्छाएं उनको अपनी तरफ़ नही खींच सकती हैं। जिस प्रकार अंतरिक्ष यान जब ज़मीन के मदार से निकल जाता है तो अब ज़मीन की शक्ति उसको अपनी तरफ़ नही खींच सकती, इसी प्रकार आप भी समय के बीतने के साथ साथ अपने आप को शारीरिक इच्छाओं के जाल से निकाल लें तो यह शरीरिक इच्छाएं और शैतानी भ्रम आप पर कोई प्रभाव ना डाल सकेंगे।

अहले बैत के सच्चे साथी जैसे सलमान फ़ारसी इसी तरह के थे। वह शारीरिक इच्छाओं के जाल से निकल गए थे और माद्दीयात की क़ैद से आज़ाद हो गए थे, इसलिए ग़ैब की दुनिय से संपर्क में थे। वह शक्ति और विलायत जो सलमान में थी वह इस कारण थी कि उन्होंने शारीरिक इच्छाओं और अपनी हवस को मार दिया था, और अमीरुल मोमेनीन (अ) के इरादे और उनकी इच्छाओं को अपने इरादे और इच्छाओं से आगे कर लिया था, और इसी कारण छिपी हुई ताक़तों और ग़ैबी शक्तियां रखते थे और उनका इस्तेमान किया करते थे।

 


[1] सूरा अन्कबूत आयत 69

[2] देखे फ़वाएदुल तूसिया, मरहूम शेख़ हुर्रे आमेली, पेज 82

 

 

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