امام صادق فیق پوسی کسل بیونید پقری ناکهوےنمنرونه تهوک نارےنری ژهیوگنگ مه کهوی فیق پوے چوکی بیک پاٍ
2) रूहानी कमाल

2) रूहानी कमाल

इन्सान अपने अंदर संपूर्ण इन्तेज़ार को पैदा करके ज़ोहूर के ज़माने के लोगों के कुछ हालात को (जैसे दिल की पाकी, और आत्मा की पवित्रता) को अपने अंदर पैदा कर सकता है और उम्मीद और आशा का दामन थामे हुए ख़ुद को तबाही और बरबादी से बचा सकता है।

इसी से संबंधित एक रिवायत में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने पिता अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) रिवायत करते हैं कि आप (इमाम अली (अ)) ने फ़रमायाः

اَفْضَلُ عِبٰادَةِ الْمُوْمِنِ اِنْتِظٰارُ فَرَجِ اللّٰہ[1]

मोमिन की सब से अच्छी इबादत यह है कि वह ख़ुदा से फ़रज की उम्मीद रखता हो।

इसी कारण वश इन्तेज़ार के माध्यम से इन्सान अपने अंदर ज़ोहूर के ज़माने के कुछ प्रभावो को पैदा कर सकता है, इस मतलब की व्याख्या के लिए इमाम सज्जाद (अ) के अबी ख़ालिद से कहे हुए इस कथन पर ध्यान दीजिएः

عَنْ اَبِی خٰالِدِ الْکٰابُلِی عَنْ عَلِیِّ بْنِ الْحُسَیْنِ تَمْتَدُّ الْغَیْبَةُ بِوَلِیِّ اللّٰہِ الثّٰانِی عَشَرَ مِنْ اَوْصِیٰائِ رَسُوْلِ اللّٰہِ (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) وَ الْآئِمَّةِ بَعْدِہِ ،یٰا اَبٰاخٰالِدٍ اِنَّ أَھْلَ زَمٰانِ غَیْبَتِہ ،اَلْقٰائِلُوْنَ بِامٰامَتِہِ ،اَلْمُنْتَظِرُوْنَ لِظُہُوْرِہِ ،اَفْضَلُ اَھْلِ کُلِّ زَمٰانٍ ،لِاَنَّ اللّٰہَ تَعٰالٰی ذِکْرُہُ اِعْطٰاھُمْ مِنَ الْعُقُوْلِ وَالْاَفْہٰامِ وَالْمَعْرِفَةِ مٰا صٰارَتْ بِہِ الْغَیْبَةُ عِنْدَ ھُمْ بِمَنْزِلَةِ الْمُشٰاہَدَةِ ،وَ جَعَلَہُمْ فِی ذٰلِکَ الزَّمٰانِ بِمَنْزِلَةِ الْمُجٰاہِدِیْنَ بَیْنَ یَدَیْ رَسُوْلِ اللّٰہِ (صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم) بِالسَّیْفِ ،اُو لٰئِکَ الْمُخْلَصُوْنَ حَقًّا،وَ شِیْعَتُنٰا صِدْقًا ،وَالدُّعٰاةُ اِلٰی دِیْنِ اللّٰہِ سِرًّا وَ جَہْرًا وَقٰالَ: اِنْتِظٰارُ الْفَرَجِ مِنْ أَعْظَمِ الْفَرَجِ[2]

अबी ख़ालिद ने हज़रत अली बिन हुसैन (अ) (इमाम सज्जाद) से रिवायत की है कि आप फ़रमाते हैः

ख़ुदा के वली और पैग़म्बर की बारहवे वसी और आप के बाद के इमामों में ग़ैबत का समय बहुत अधिक होगा।

ऍ! अबू ख़ालिद जान लो कि जो लोगो उनकी ग़ैबत के ज़माने में होंगे और उनकी इमामत पर अक़ीदा रखते होंगे और उनके ज़ोहूर का इन्तेज़ार कर रहे होंगे, हर ज़माने के लोगों से बेहतर होंगे।

इसलिए कि ख़ुदा वंद उनको इतनी अधिक अक़्ल, समझ और मारेफ़ेत देगा कि ग़ैबत उनके लिए ऍसे ही होगी कि जैसे वह उन्हें देख रहे हों और ख़ुदा ने उन को उस ज़माने में उन मुजाहिदों के समान मरतबा दिया हैं जो पैग़म्मबर के ज़माने में उन के साथ तलवार लेकर जंग किया करते थे। वह वास्तव में ख़ुलूस वाले हैं और हमारे सच्चे शिया हैं और लोगों को खुले आम और तन्हाई में ख़ुदा के दीन की तरफ़ बुलाते हैं।

फिर इमाम सज्जाद फ़रमाते हैः ज़ोहूर का इन्तेज़ार सब से बड़ी फ़रज (वुसअत और कुशादगी) है।

दोस्त नज़दीकतर अज़ मन, बे मन अस्त

वैन अजीबतर कि मन अज़ वय दूरम

ईन सोख़न बा कि तवान गुफ़्त की दोस्त

दर किनारे मन व मन महजूरम

सच्चे इन्तेज़ार करने वाले इन्तेज़ार करते हुए रूहाना पराकाष्ठा तक पहुंच गए हैं, अपने आप को ग़ैबत के ज़माने में सारी दुनिया पर ख़ुदा की ग़ैबी ताक़तों की हुकूमत के लिए तैयार करने के कारण इमाम ज़मान के ज़ोहूर के ज़माने की कुछ एकाकी विशेषताओं (जैसे दिल की पाकी और आत्मा की पवित्रता) को अपने अंदर पैदा कर लिया है, इस प्रकार कि ग़ैबत के अंधेरे और भयानक दिन उनके लिए ज़ोहूर के जैसे हैं।

अगर उनके अंदर इस प्रकार के प्रभावों वाला ना हो तो किस प्रकार ज़ोहूर का इन्तेज़ार वुसअत और कुशादगी होगी? वह इन्तेज़ार के माध्यम से ज़ोहूर और ग़ैबत के ज़माने को जोड़ते हैं और उस ज़माने (ज़ोहूर के ज़माने) के कुछ हालात को ग़ैबत के दिनों में हासिल कर लेते हैं[3]


 


[1] बिहारुल अनवार, जिल्द 52, पेज 131

[2] बिहारुल अनवार, जिल्द 52, पेज 122

[3] जैसा कि हम ने बताया कि बहुत कम लोग, जैसे सैय्यद बहरुल उलूम और मरहूम शेख़ मुर्तज़ा अंसारी, ने इन हालात को हासिल कर लिया है।

 

 

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