الإمام الصادق علیه السلام : لو أدرکته لخدمته أیّام حیاتی.
मोबाहेले में हाज़री

मोबाहेले में हाज़री

(मोबाहेलाः उसको कहते हैं जिस में दो गिरोह होते हैं और एक दूसरे पर बददुआ करते हैं और जो सच्चा होता है ख़ुदा उसकी दुआ को क़बूल करता है।)

शीया धर्म गुरूओं ने बहुत ज़्यादा परीशानियाँ बर्दाशत करके ख़ुदा के दीन की हिफ़ाज़त की और उसको तहरीफ़ (तहरीफ़ः यनी दीन में कोई भी ऐसी चीज़ जो दीन में ना हो नहीं आने दिया और आज तक अस्ल दीन बाक़ी है। और उसमें दूसरे धर्म की तरह कोई भी बदलाव नहीं आया, जैसे यहूदी या ईसाई धर्म बदल गये।) होने से बचा लिया। हमारे बुज़ुर्गों (यानीः ओलमा ) ने वेलायत को बचाने और शीया मज़हब को साबित करने के लिए हर तरह की क़ुर्बानियाँ दी हैं। और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की महानता को जानते और समझते हुए और उस पर यक़ीन रखते हुए अपने दुश्मनों से मोबाहेला भी किया है और ख़ुदा ने उनको सफ़लता भी दी है और इस तरह उन्होंने अपने दीन के दुश्मनों का नाश किया है।

महान धर्म गुरू जनाब मोहम्मद इब्ने अहमद का मोबाहेला भी एक मिसाल है। उन्हों ने दुश्मनों के सामने शीया धर्म को सच और सही साबित भी किया। और शीयों के बुज़ुर्ग और महान धर्म गुरुओं में से हैं, और बहुत से बड़े-बड़े शीया धर्म गुरु जैसे शैख़ मुफ़ीद अलैहिर्रहमा ने उनसे रेवायत भी बयान की है। जनाब मोहम्मद इब्ने अहमद ने शीया अक़ाएद के बारे में बहुत सी किताबें भी लिखी हैं और आप जनाब क़ासिम इब्ने अला के शिष्यों में से हैं।

जनाब मोहम्मद इब्ने अहमद की आँखों की रौशनी चली गयी थी मगर उसके बावजूद उन्होंने लिखने वाला एक आदमी रखा हुआ था जिसकी सहायता से आप ने बहुत सी किताबें शीया अक़ाएद के बारे में लिखी हैं। उनके ज़माने का बादशा है, सैफ़ुद्दौला उनका बहुत मान-सम्मान करता था। उन्होंने सेफ़ुद्दौला के सामने मूसल के क़ाजी से मोबाहेला किया, जो कि बहुत ही मुतअस्सिब (भेद-भाव करने वाला) इंसान था, और मोबाहेले के बाद भी उसके दिल से तअस्सुब ख़त्म नहीं हुआ। लेकिन मोबाहेले का असर यह हुआ कि वह बीमार पड़ा, जो हाथ उसने मोबाहेले में उठाया था वह काला हो गया और इसी बीमारी में वह हलाक हो गया।(7)

इस तरह जनाब मोहम्मद इब्ने अहमद ने अपने यक़ीन और एतेक़ाद से उस मुतअस्सिब इंसान को मोबाहेले में पराजित किया, शीया अक़ाएद को ज़िंदा किया, तारीख़ ऐसी मिसालों से भरी पड़ी है कि शिया धर्म गुरुओं नें अपने यक़ीन और एतेक़ाद की वजह से अपने दुश्मनों को पराजय दी है, और अपने यक़ीन के कारण ही वे लोग दूसरों में भी यक़ीन पैदा कर सके हैं।

मीर फ़न्दरसकी भी ऐसे ही लोगों में हैं जिन्होंने अपने यक़ीन और एतेक़ाद के कारण अपने दुश्मनों को शिकस्त दी। और दूसरों के दिलों में भी यक़ीन का बीज बोया।

इस वाक़ेए को स्वर्गीय नराक़ी अपनी किताब अलख़ज़ाएन में इस तरह लिखते हैं:

मीर फ़न्दरसकी, अपने एक सफ़र में, गैर मुस्लिम लोगों की बस्ती तक पहुँच गए और उनसे बात करने के लिए बैठ गए। उनमें से एक गिरोह ने कहा कि हमारा धर्म सच्चा है और आप का धर्म बातिल। और उसकी दलील यह है कि हमारी इबादत गाहें दो हज़ार साल पुरानी हैं मगर आप लोगों की मस्जिदें सौ साल से ज़्यादा पुरानी नहीं हैं। चूंकी हर धर्म की ऐसी ही चीज़ों का बाक़ी रहना उस धर्म के सच होने की दलील हैं और हमारे धर्म की यह सब चीज़ें बाक़ी हैं इस लिए हमार धर्म सच्चा है और आप का बातिल (झूटा)।

मीर फ़न्दरसकी ने अपने यक़ीन से इस बात का जवाब इस तरह दियाः

आप की इबादत गाहों का बाक़ी रहना और हमारी मस्जिदों के खराब होने का कारण यह है कि हमारी मस्जिदों में ख़ुदा की इबादत होती है जिसको मस्जिद के दरो-दीवार बर्दाशत नहीं कर पाते हैं। और गिर जाते हैं क्योंकि ख़ुदा बहुत अज़ीम है, और उसकी इबादत भी।

और आप की इबादत गाहों में ख़ुदा की इबादत नहीं होती बल्कि ग़ैरे ख़ुदा की इबादत होती है इस लिए उसमें कोई भी ख़राबी पैदा नहीं होती है। अगर हमारे ख़ुदा कि इबादत तुम्हारी इबादत गाहों में होने लगे तो तुम भी देखो गे कि तुम्हारी इबादत गाहें भी बर्दाशत नहीं कर पाएँगी और गिर जाएँगी।

उन लोगों नें मीर फ़न्दरसकी से कहा कि यह बात भी साबित हो जाएगी आप जाकर हमारी इबादत गाह में इबादत करें, हम भी देखें कि वह बर्दाशत कर पाती हैं कि नहीं ?

जनाब मीर फ़न्दरसकी ने ऐसा ही किया, वज़ू किया, और वज़ू करने के बाद ख़ुदा पर तवक्कुल (भरोसा), और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से तवस्सुल करते हुए, इबादत गाह में प्रवेश किया जो कि बहुत ही मज़बूत बनी हुई थी, और दो हज़ार साल पुरानी थी।

लोगों की एक भीड़ जमा थी उस दृशय को देखने के लिए, जनाब मीर फ़न्दरसकी इबादत गाह में प्रवेश करने के बाद अज़ान और अक़ामत कही और नमाज़ की नीयत करते हुए बुलन्द आवाज़ में अल्लाहो अकबर कहा और इबादत गाह से भागते हुए बाहर निकले, लोगों ने देखा कि उस इबादत गाह की छत अचानक गिर गयी और दीवारें भी ख़राब हो गयीं(8)। इस घटना को देख कर वहाँ के बहुत से काफ़िर मुसलमान हो गए।(9)

 


7. फ़वाएदुर्रज़वीया, मोहद्दिसे क़ुम्मीः 388

8. जामेए दुररः 2/370

9. तज़केरतुल क़ुबूरः 60

 

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