आज के ज़माने में अंतरिक्ष में जाना ख़तरे से ख़ाली नहीं
अब तक हम ने अंतरिक्ष में यात्रा के ख़र्च के बारे में जो कुछ बयान किया उससे मालूम होता है कि वे लोग जो इस यात्रा पर गए और जिन्हों ने भेजा वे लोग खुद भी इस बात को जातने हैं कि इल्मी उन्नति हर तरफ़ होगी तो आने वाले पीढ़ी उन पर हँसे गी।
अब इस बात की तरफ़ ध्यान दें।
इस ज़माने में चाँद तक पहुँचने के लिए (ना कि कहकशाओं और सितारों तक पहुँचने के लिए) ख़र्च बहुत ही ज़्यादा है। और दूसरी बात यह है कि आज अंतरिक्ष में यात्रा करना ख़तरनाक भी है। मगर अमेरिका और उस जैसे दूसरे राज्य सिर्फ़ और सिर्फ लोगों पर अपनी बड़ाई जताने के लिए और उनपर अपना रोब झाड़ने के लिए हजारों लोगों की ज़िंदगियों से खेल रहे है। अंतरिक्ष में अंजाम दिए जाने वाले काम ख़ुद भी इस बात के गवाह हैं मगर उस से लोगों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है। और वे लोग अपना राज्य बनाने और बचाने के लिए तजरबा करते जा रहे हैं।
इस बात को और विस्तार से जानने के लिए इस मतलब पर ध्यान दें।
नासा ने 1997 ई0 में, कासनी नामी शटल को जो कि 32 किलो ग्राम प्लेटिनियम थी, को अंतरिक्ष में भेजा। इस यात्रा में ख़तरा है, नासा ने इस बात की भी शंका जताई थी। अगर यह कासनी फट जाती तो दुनिया में रहने वाले पाँच अरब लोग उसकी रेज़ से प्रभावित होते और बीमारी के फैलने का भी खतरा था। जिसमें सबसे हानिकारक बीमारी कैंसर भी हो सकती है। यहाँ तक कि अगर कोई उस प्लेटिनियम को सूंघ ले तो कैंसर जैसी बीमारी में मुब्तेला हो सकता है।
बरूस गागून कहता है कि ऐसे कामों में अंतरिक्ष में जो तजरबा किया जाता है अगर वह नाकाम हो जाएँ तो उससे बहुत बड़ी तबाही हो सकती है।(13) अब सवाल यह है कि अगर इन कामों को अंजाम देने में इतना ख़तरा है तो फ़िर ऐसे कामों का अंजाम देना समाज की ख़िदमत है या ख़यानत ?
यह बहुत बड़ा ख़तरा है। और अगर इत्तेफ़ाक़ से यह तरजरबा सफ़ल भी हो जाए तो हम कहकशाँ में मुश्किल से दस या बारह सितारों तक ही पहुँच सकते हैं। तो ऐसे कामों के लिए दुनिया और समाज को बली पर क्यों चढ़ाएँ जिस में ख़तरा है ?
(13) मजल्लए दानिस्तहाः साल, 26 महर 1383, न0, 360, पृष्ठः 42
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