الإمام الصادق علیه السلام : لو أدرکته لخدمته أیّام حیاتی.
प्रतीक्षा; और संसार की आशा की ओर

प्रतीक्षा; और संसार की आशा की ओर

विश्वास रखिये कि जो भी सच्ची तरह इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की तलाश में होगा और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की राह में सेवा करेगा और इनके ज़हूर (प्रकट) की जल्दी के लिए प्रयत्न करेगा तो उसे विश्वास रखना चाहिए कि अन्तत: वह रास्ता उसे ऐसी जगह ले जाएगा जहाँ इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की ओर एक खिड़की खुलती हो अत: आँहज़रत (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की सहयता करें कि जिनके हाथों को ग़यबत ने उसी तरह बाँध डाला है जिस तरह शत्रुओं ने हज़रत अली (अ0स0) की गरदन में रस्सी बाँधी थी और उस महान के हाथों को बाँध दिया था। अत: चुप ना बैठो और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के ज़हूर की जलदी के लिए प्रयत्न करो ।

धैर्य रखिए कि अगर कोई इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के रासते में प्रयत्न करे और किसी ग़लत सोच में ना पड़े तो ज़रुर इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की कृपा होगी। और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) एक संदेश के द्वारा उस के दिल को खुश करेगें। इसलिए कि ये मुमकिन नहीं कि कोई किसी की खोज दिल से करे और वह ना मिले.

हज़रत अली (अ-स) फरमाते हैः

जो किसी चीज़ की खोज में है वह उसे या उस का कुछ भाग अवश्य पा लेगा.

आप धैर्य रखें कि अगरचे यह ग़यबत का दौर जो कि काला दौर है और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की मोहब्बत के ज़ाहिर करने का दौर नही है लेकिन उस के बावजूद इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) इस दुनिया की जान हैं। और पूरा संसार उन के प्रेम में डूबा हुआ है।

इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की ज़ियारत में पढ़ते हैः

ऐ दुनिया की जान आप पर हमारा सलाम हो।

ग़यबत के इस अन्धेरे दौर में हर चीज़ उसी नूर के कारण जी रही है और जीती रहेगी, और यह सब इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की इमामत की वजह से है.और सिर्फ यह दुनिया ही नही बल्कि हज़रत ईसा (अ0स0) भी उस महान व्यक्ति के हुकुम के मानने वाले हैं. और सिर्फ गयबत के ज़माने में ही नही बल्की आज भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं.

इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की ज़यारत में पढ़ते हैं

ऐ मसीह के इमाम आप पर सलाम हो ।

यह इमामत इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के ज़माने से सम्बन्धित नहीं है बल्कि इस वक़त भी हज़रत ईसा (अ-स) अपने महान पद के बावजूद इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की इमामत से जुड़े रहने मे गर्व महसूस करते हैं.

किताबों में है.

(सच्चा प्रेम करने वालों में) 30 व्यक्ति हों तो फीर इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) अकेले नहीं हैं।

इन सब बातों को बयान करने से हमारा मक़सद यह है की गयबत का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि दुनिया से इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की अनदेखी सहायता को उठा लिया गया है और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) किसी की सहायता नहीं करते बल्कि जिस तरह हम ने बयान किया कि वह लोग जो दिल से इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) की तरफ क़दम बढ़ाते हैं और इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के ज़हूर की प्रतीक्षा करते हैं वह इमाम-ए-ज़माना (अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) के एक संदेश की सहायता से अपने दिल को मज़बूत बना लेते हैं।

 

हवाला:

1- किताबे जलवाहाये नूर अज़ ग़दीर ता ज़हूर – 110

2- सहीफए मेहदिया 85-88

 

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