حضرت امام صادق علیہ السلام نے فرمایا : اگر میں ان(امام زمانہ علیہ السلام) کے زمانے کو درک کر لیتا تو اپنی حیات کے تمام ایّام ان کی خدمت میں بسر کرتا۔
3. यक़ीन (विश्वास) नफ़्स को पाक करता है

3. यक़ीन (विश्वास) नफ़्स को पाक करता है

कभी-कभी इंसान अपने जिस्म (ज़ाहिर) को सजाता और सँवारता है लेकिन वह अपने अंदर (बातिन) से ग़ाफ़िल होता है जिसके कारण वह हमेशा बेचैनी महसूस करता है यह और बात है कि वह दुनिया की रंग-रलियों में पड़ के अपनी बेचैनियों को ना समझ सके या कुछ देर के लिए उससे ग़ाफिल हो जाए मगर हक़ीक़त वही है जो हमने कहा कि उसको रुहानी सकून नहीं मिल सकता है अगर नफ़्स और बातिन पाक ना हों। जब तक इंसान का बातिन पाक ना हो उसको पता ही नहीं चलता कि जो अमल वह कर रहा है उसको ख़ुदा स्वीकार भी करेगा या नहीं ? वह हमेशा इसी उधेड़ बुन में लगा रहता है कि उसकी आख़ेरत कैसी होगी ? उसके आमाल ख़ुदा स्वीकार करेगा कि नहीं ? वह अपने बातिन को कैसे पाक करे ? क्या इस रूहानी ग़म से मुक्ति का कोई रास्ता है ?

इन प्रश्नो के उत्तर में हम यही कह सकते हैं कि अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के मआरिफ़ पर यक़ीन ही रूहानी ग़म से नेजात (मुक्ति) पाने का रास्ता हो सकता है, क्योंकि यक़ीन बातिन को पवित्र करता है। इसीलिए रविवार को पढ़ी जाने वाली दुआ में आया है किः

اللھم اصلح بالیقین سرائرنا

ख़ुदाया ! हमारे यक़ीन के माध्यम से हमारे बातिन की इस्लाह फ़रमा।(12)

जिनके दिल में यक़ीन होता है वे लोग नेक और नेक सीरत होते हैं और बेकार कामों और बातों से दूर रहते हैं। और जिनके अंदर बुराई हो वे लोग भी अपने बातिन को यक़ीन की सहायता से पवित्र बना सकते हैं। यक़ीन ना केवल यह कि वह शैतान से, इंसान को सुरक्षित रखता है बल्कि अगर इंसान के बातिन में कोई बुराई होती है तो यह यक़ीन उसको भी पवित्र कर देता है और बातिन की बुराईयों को ख़त़्म कर देता।

इसी वजह से रसूले ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम एक हदीस में फ़रमाते हैं:

خیر ما القی فی القلب الیقین

मोमिन के दिल में (ख़ुदा की तरफ़ से) डाली जाने वाली चीज़, ,यक़ीन है।(13)

जैसा कि हमने बयान किया कि यक़ीन ना केवल यह कि वह शैतान से, इंसान को सुरक्षित रखता है बल्कि अगर इंसान के बातिन में कोई बुराई होती है तो यह यक़ीन उसको भी पवित्र कर देता है और बातिन की बुराईयों को ख़त़्म कर देता।

 


12. बेहारुल अनवारः 90/286

13. बेहारुल अनवारः 21/211

 

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