حضرت امام صادق علیہ السلام نے فرمایا : اگر میں ان(امام زمانہ علیہ السلام) کے زمانے کو درک کر لیتا تو اپنی حیات کے تمام ایّام ان کی خدمت میں بسر کرتا۔
पैग़मबरों के ज़माने से अब तक इल्म के पहलू (पक्ष)

पैग़मबरों के ज़माने से अब तक इल्म के पहलू (पक्ष)

जबसे इंसान पैदा किए गये हैं तब से पैग़मबरों ने इल्म लोगों को सिखाए, और उसी तरह अब तक अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के उलूम पर ग़ौर करने से यह बात पता चलती हैं कि यह सब एक नोक़्ते में ही सीमित हैं और उनमें किसी भी तरह का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।

क्योंकि सारे के सारे नबियों ने लोगों को जो इल्म दिए हैं, और उसी तरह हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम नें लोगों को जो इल्म दिए, और अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम ने जो इल्म लोंगों को दिए वह दो प्रकार के हैं

1. या तो वह सुन के प्राप्त किया गया था।

2. या देख कर।

यानी या तो किताबों में पढ़ कर या फिर पैग़मबरों से सुनकर।

अगरचे इल्म को प्राप्त करने के दूसरे रास्ते भी हैं कि जिससे हर इंसान लाभ नहीं उठा सकता है मगर कुछ लोग हैं जो उस रास्ते से भी लाभ उठाते हैं।

सम्भव है कि इन बातों का मतलब यह हो कि अब तक इल्म को प्राप्त करने के सिर्फ़ यही दो रास्ते थे और इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से पहले तक भी यही दो रास्ते ही हों, यानी या तो सुनकर इल्म हासिल हो या फिर पढ़ कर।

सारे लोग आम तौर पर इन्हीं दो रास्तों से ही इल्म हासिल करते हैं। लेकिन इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर के बाद और बहुत से रास्ते होंगे इल्म हासिल करने के।

जैसे कि ईश्वर के फ़रिश्ते दिल में इल्म को डाल देंगे, यह ना तो सुनने वाला इल्म है और ना ही पढ़ने वाला, रेवायात में इसको बयान भी किया गया है।

अगर इस बात को मान भी लिया जाए कि इल्म हासिल करने के सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं तो इसका मतलब यह है कि अब तक इस में कोई भी प्रगति नहीं हुई है क्योंकि आज भी यही दो रास्ते ही हैं मगर इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर के बाद इसमें 13 गुना बढ़ोत्तरी होगी और रेवायात से यह भी पता चलता है कि इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने जो यह फ़रमाया था कि इल्म के 27 शब्द हैं उससे यह पता चलता है कि इल्म 27 प्रकार के हैं। क्योंकि वह फ़रमाते हैं कि पैग़मबरों के ज़माने से लेकर इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से पहले तक इल्म दो शब्दों में सीमित है।

और इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने जो यह कहा कि इल्म के दो शब्द हैं और इसका मतलब अगर वही इल्म के दो प्रकार (यानी सुनकर और पढ़ कर) मुराद (आशय) हों तो फिर पैग़मबरों के ज़माने से लेकर इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से पहले तक इल्म में कोई भी प्रगति नहीं होनी चाहिए थी जबकि यह बात बिल्कुल ही साफ़ है कि अब तक इल्मी मैदान मे हज़ार गुना इज़ाफ़ा हुआ है। चाहे दीनी इल्म हो या फिर दुनिया का। अतः रेवायत का मतलब इल्म की प्राप्ति के रास्ते है ना कि इल्म के प्रकार।

और यह भी पता चलता है कि इंसनो के पास इल्म प्राप्त करने के दो ही रास्ते हैं एक सनकर और दूसरा पढ़ कर। मगर यह रास्ता इंसानो के लिए है पैग़मबरों के लिए नहीं।

अगर इमाम-ए-जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम उस ज़माने में यह फ़रमाते कि इल्म के सीखने के 27 रास्ते हैं तो कितने लोग इस बात को स्वीकार करते ? उस ज़माने की बात छोड़ें अगर आज के ज़माने में यह बात कहते तो कितने लोग इस बात को स्वीकार करते?(2)

हज़रत इमाम-ए-हादी अलैहिस्सलाम इस आयत के बारे में फ़रमाते हैं:

‘‘ولو انما فی الارض من شجرۃ اقلام والبحر یمدہ من بعدہ سبعۃ ابحر ما نفدت کلمات اللہ ان اللہ عزیز حکیم’’  (3)

‘‘نحن الکمات التی لا تدرک فضائلنا و لا تستقصی’’

हम कलेमाते ख़ुदा हैं हमारी फ़ज़ीलत (महानता) के दर्जे तक कोई पहुँच नहीं सकता और ना ही उनकी कोई इंतेहा (अंत) है।(4)

इस रेवायत से यह पता चलता है कि इल्म के 27 शब्द नहीं बल्कि 27 रास्ते हैं इल्म के हासिल करने के।          अगरचे इंसान ज़हूर से पहले दो तरीक़ों से ही इल्म हासिल कर रहा है और करता रहेगा मगर ज़हूर के ज़मानें में 27 रास्तों से इल्म हासिल करेगा।

 


(2) शरहे दुआए समातः 41. स्वर्गीय आयतुल्लाह सय्यद अली क़ाज़ी।

(3) सूरए लुक़मानः 27

(4) बेहारुल अनवारः 50/166

 

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