आत्म-सम्मान
ज़हूर के ज़माने और ग़ैबत के ज़माने में बड़ा फ़र्क है जिससे यह पता चलता है कि ज़हूर का ज़माना ग़ैबत के ज़माने से बेहतर और बा बरकत है। मगर अफ़सोस कि हमारा समाज उसकी विशेष्ता से बेख़बर है। हर गैरतमंद शीया का यह कर्तव्य है कि वह इन चीज़ों को पहचाने।
हमारा समाज इन सब बातों को क्यों नहीं जानता और उससे क्यों बेखबर है ?
ऐ शीया जवानों ! ऐ अहलेबैत के पाक व पवित्र पैरोकारों ! सदियों से हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ख़ेलाफ़त के छिन जाने पर आँसू बहाने वालों, क्या तुम भी उस ज़माने के मुसलमानों की तरह चुप रोहगे ? क्या अब भी अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम का हक़ ग़सब (छीना हुआ) रहेगा ?
क्या इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ से हमारी जुदाई और ग़ैबत की 12 सदियाँ काफ़ी नहीं हैं ?
क्यों अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की मज़लूमियत सदियों से जारी है ?
लेकिन शीया ऐसी बातों से लापरवाह क्यों हैं ?
आख़िर ऐसा क्यों है ?
हम इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए कहेंगे कि ख़ुदा की लानत हो उन लोगों पर जिन्होंने सदियों से लोगों को इस्लाम से दूर कर दिया है कि जिसके कारण लोग वेलायत से दूर हो गए और उसे भुला दिया है। नीस्त व नाबूद हो जाएँ वो लोग जो अमेरिका और बरतानिया के हाथों में कठपुतली बनें हुए हैं और लोगों को गुमराह कर रहे हैं। लेकिन इसमें उम्मत की भी कोताही और ग़ल्ती है।
अब ऐसे लोगों के हलाक होने की आशा करते हुए अपने असल मतलब (वास्तविक अर्थ) पर आते हैं। और इमाम-ए-ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के न्यायिक राज्य की एक और विशेष्ता बयान करते हैं।
اليوم : 220779
الامس : 249793
مجموع الکل للزائرین : 126576238
|