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3. नफ़्स की इस्लाह

3. नफ़्स की इस्लाह

नफ़्स की इस्लाह, यक़ीन तक पहुँचने का तीसरा रास्ता है। नफ़्स की इस्लाह की सहायता से इंसान यक़ीन तक पहुँच सकता है। क्योंकि यक़ीन इंसान को असली मंज़िल तक पहुँचाता है और नफ़्स की इस्लाह से उस यक़ीन में इज़ाफ़ा होता है।

इसी बात को बयान करने के लिए इमाम-ए-मुसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने एक रेवायत में इसको बयान किया हैः

باصلاحکم انفسکم تزدادوا یقیناً و تربحوا نفیساً ثمیناً ، رحم اللہ امرءً ھم بخیر فعملہ او ھم بشر فارتدع عنہ ، ثم قال : نحن نؤید الروح بالطاعۃ للہ و العمل لہ

अपने नफ़्स की इस्लाह के माध्यस से अपने यक़ीन में इज़ाफ़ा करें। ख़ुदा उस इंसान पर रहमत करे कि जो अच्छे काम की हिम्मत करे, और उसको अंजाम दे, या बुरे काम का इरादा करे लकिन अपने नफ़्स पर क़ाबू करते हुए उसको अंजाम ना दे। फिर इमाम ने फ़रमायाः

हम अहलेबैत ख़ुदा की इताअत के ज़रिए, और अपने अमल के ज़रिए रूह की ताईद करते हैं।(25)

पस नफ़्स की इस्लाह से इंसान के यक़ीन में इज़ाफ़ा होता है क्योंकि शक शैतान के बहकाने के कारण ही पैदा होता है, और इस्लाहे नफ़्स के माध्यम से इंसान शैतान और ख़ुद नफ़्स दोनो पर हावी (ग़ालिब) रहता है।

अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की हदीसों से यह पता चलता है कि यक़ीन और इस्लाहे नफ़्स के बीच एक गहरा सम्बंध है। यानी इसका मतलब यह है कि नफ़्स की इस्लाह के माध्यम से यक़ीन में भी इज़ाफ़ा होता है। पस नफ़्स की इस्लाह करके आप अपने यक़ीन में इज़ाफ़ा कर सकते हैं। इसी तरह यक़ीन के माध्यम से आप अपने बातिन (नफ़्स)  को पवित्र बना सकते है।

तारीख़ में जो लोग चमत्कारी थे उन लोगों ने अपने यक़ीन की शक्तियों से लाभ उठाया है। इस बात को साबित करने के लिए हम एक वाक़ेआ बयान करते हैं।

स्वर्गीय शैख़ हसन अली इस्फ़हानी ने बयान किया है कि आपने फ़रमायाः

जब मैं हज के लिए हेजाज़ पहुँचा तो मेरे पास पैसे नहीं थे। मक्के में टैक्स के नाम पर हर यात्री से  कुछ पैसे लेते हैं। तो कुछ लोग वह टैक्स नहीं देना चाहते थे इस लिए हम लोग जद्दा के रास्ते मक्का जाने लगे। रास्ते में पुलिस वालों से ने मुलाक़ात हुई तो उन लोगों ने कहा कि जब तक टैक्स लेने वाली पुलिस यहाँ ना पहुँच जाए तुम लोग यहीं खड़े रहो, और टैक्स देने के बाद ही मक्का जा सकते हो।

हम लोग एक खजूर के पेड़ के नीचे बैठ कर पुलिस वालों का इंतेज़ार करने लगे। और वहीं पर सब लोगों ने टैक्स देने के लिए पैसे जमा करना शुरू किये और मुझ से भी टैक्स के पैसे माँगे।

मैंने कहा कि मेरे पास तो टैक्स देने के लिए पैसे नहीं हैं। तो उन लोगों ने कहा कि अगर तुम हम से यह उम्मीद करते हो कि हम तुम को पैसे देगें तो ग़लत सोचते हो, हम तुम को पैसे नहीं देंगे, और अगर तुम पैसा नहीं दोगे तो फिर मक्का नहीं जा सकते हो।

मैंने उन लोगों से कहा कि मुझे तुम से कोई उम्मीद नहीं है, बल्कि मै तो ख़ुदा से उम्मीद करता हूँ कि जो मेरी मदद ज़रूर करेगा।

उन लोगों ने मेरा मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा की इस बियाबन और सहरा में ख़ुदा किस तरह तुम्हारी मदद करेगा ?!

मैंने कहा की रसूले ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने एक हदीस में फ़रमाया कि जो लोगों कि ख़िदमत करे और उसके बदले में कोई मज़दूरी ना ले तो ख़ुदा वन्दे आलम बियाबान में भी उसकी, उसी तरह मदद करेगा। और रूकावटों को ख़त्म करेगा।

एक घेंटे के बाद उन लोगों ने फिर मुझ से वही पैसों का सवाल किया और मैंने उनको वही जवाब दिया, तो उन लोगों ने फिर मेरा मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि इस आदमी ने अफ़ीम पी ली हो कि जिसके कारण ऐसी बातें कर रहा है। वरना इस बियाबान में हम लोगों के अलावा कौन है कि जो इसकी मदद करे, लेकिन हम भी इसकी मदद नहीं करेंगे।

कुछ देर गुज़रने के बाद दूर से मट्टी उड़ते हुए देखाई दी, मैंने उन लोगों से कहा कि यह मेरी तरफ़ आने वाली नेकी है, उन लोगों ने फिर मेरा मज़ाक उड़ाया, जब मट्टी छटी तो उसमें से दो सवार दिखाई दिए जो अपने घोड़े की लगाम पकड़ कर खींचते हुए हमारे पास आए और उनमें से एक ने कहा कि तुम लोगों में से शैख़ अली इस्फ़हानी कौन है ?

मेरे साथियों ने मेरी तरफ़ इशारा करते हुए कि शैख़ अली इस्फ़हानी यह हैं।

उन लोगों ने कहा कि शरीफ़ की दावत को स्वीकार करें। और मैं घोड़े पर सवार हो गया और शरीफ़ मक्का की तरफ़ चल पड़ा। जब शरीफ़ ने मक्के में प्रवेश किया तो मैंने देखा कि वहाँ स्वर्गीय शैख़ फ़ज़लुलल्लाह नूरी और स्वर्गीय शैख़ मोहम्मद जवाद बैदाबादी भी उपस्थित हैं। शरीफ़ की कोई मनोकामना थी जो मेरे दुआ करने के कारण पूरी हुई थी यह बात मुझे बाद में पता चली।

शरीफ़ ने पहले वह मनोकामना स्वर्गीय शैख़ फ़ज़लुलल्लाह नूरी से कहा था तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी यह मनोकामना फ़लाँ व्यक्ति ही पूरी कर सकता है तुम अपने नौकरों को हुक्म दो कि उस व्यक्ति को जहाँ भी हो खोज कर लाएँ, इसीलिए शरीफ़ ने हुक्म दिया कि मक्का के सारे रास्तों को छान मारो और उस व्यक्ति (यानीः स्वर्गीय शैख़ हसन अली इस्फ़हानी) को खोज कर लाओ।

तो यह थी अवलियाए ख़ुदा में से एक वली की मिसाल जो ख़ुदा पर इतना यक़ीन रखते थे कि जिसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं और उनके यक़ीन का नतीजा था कि ख़ुदा ने क़दम क़दम पर उनकी सहायता की और कभी भी उनको निराश नहीं किया।

 


25. बेहारुल अनवारः 69/194. उसूले काफ़ीः 2/268 ­­

 

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