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विश्वास का महत्व

विश्वास का महत्व

विश्वास, ग़ैबत के ज़माने को पहचानने का एक रास्ता है।

विश्वास, आलमे मलक़ूत (वह दुनिया जहाँ फ़िरश्ते रहते हैं और जिस को अभी देखा नहीं जा सकता है।) तक पहुँचने का पुल और रास्ता है।

विश्वास, ख़ुदा के नेक बंदो की सिफ़त है।

विश्वास, अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के साथियों, और दोस्तों की ख़ास विशेष्ता है।

विश्वास, इंसान के अंदर एक रूहानी शक्ति (आध्यात्मिक शक्ति) को पैदा करता है।

विश्वास, अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से संपर्क का वसीला है।

विश्वास, अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम से क़रीब होने का वसीला है।

इंसान अपने अंदर विश्वास पैदा करके, अपने दिल को फ़रिश्तों का घर बना सकता है और फिर उसकी सहायता से शैतान के शर से भी दूर रह सकता है और शैतान को अपने से दूर कर सकता है। और जब शैतान को अपने से दूर रखेगा तो उससे इंसान के अंदर आध्यात्मिक शक्तियाँ पैदा होंगी और ऐसी सूरत में इंसान का दिल नूर से भर जाएगा।

इसी लिए जब इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ ज़हूर करेंगे तो सब लोगों का दिल विश्वास और यक़ीन से भरा हुआ होगा। क्योंकि उस दिन जब दुनिया की सब से पुरानी इबादत गाह यानी ख़ान-ए-काबा से इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ की आवाज़ दुनिया के सारे लोगों के कानो में गूंजेगी तो इबलीस और उसके मानने वालों के दिलों में डर और भय पैदा हो जाएगा। और इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के ज़हूर से ही सारे शैतानों का नाश हो जाएगा।

उस समय लोगों का दिल शक, डर और भय से मुक्ति पा जाएगा और उसे में इतमीनान भर जाएगा। ज़हूर के बा बरकत दिन सब के दिल विश्वास, यक़ीन, और ईमान से भर जाएँगे। उस दिन इंसान के पास ईमान ना लाने का कोई बहाना नहीं रह जाएगा इस लिए की उस दिन ईमान लाने के सारे वसाएल उपस्थित हो जाएँगे।

इस बात को विस्तार से बयान करने के लिए हम कुछ नुकात को बयान करेंगेः

ख़ुदा वन्दे आलम क़ुर्आन मजीद में जनाबे इब्राहीम के बारे में फ़रमाता हैः

وکذٰلک نری ابراھیم ملکوت السمٰوات والارض ولیکون من الموقنین

और इसी तरह हम जनाबे इब्राहीम को ज़मीन व आसमान को दिखाते हैं ताकि वह यक़ीन करने वालों में से हो जाएँ।(1)

सफ़वान कहते हैं मैंने इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम से इस आयत के बारे में पूछा जो जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम से ख़ुदा  वन्दे आलम ने फ़रमाया थाः

أولم تؤمن قال بلیٰ و لکن لیطمئنّ قلبی

क्या जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम को यक़ीन नहीं था ? और क्या उनके दिल में कोई शक था ?(2)

قال لا کان علی یقین و لکنّہ اراد من اللہ الزیادۃ فی یقینہ

हज़रत इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः

नहीं ऐसा नहीं है। उन्हें यक़ीन था मगर उन्होंने ख़ुदा से चाहा कि उनका यक़ीन ज़्यादा हो जाए। और इसी करण जनाबे इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने आलमे मलक़ूत को और ज़मीन के सारे हिस्सों को देखा और उनके यक़ीन में इज़ाफ़ा हो गया। और फिर उनके अंदर यह शक्ति भी पैदा हो गयी कि वह लोगों को अंदर भी यक़ीन पैदा कर सकें।(3)

ज़हूर के बा बरकत ज़माने और इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के न्यायिक राज्य पर ध्यान देने से यह पता चलता है कि इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ ख़ुद भी आलमे मलक़ूत के मालिक हैं और वह कहीं से भी ज़मीन का और आलमे मलक़ूत को देख सकते हैं और वहाँ जब चाहें पहुँच सकते हैं। जब ऐसा होगा तो फिर सोचें कि उस ज़माने के लोगों के यक़ीन (विश्वास) की सीमा क्या होगी और उनका यक़ीन किस मंज़िल पर होगा ?

और जितना यक़ीन (विश्वास) बढ़ता जाएगा उतना ही शैतान पर क़ाबू होता जाएगा, और जितना-जितना शैतान पर क़ाबू होता जाएगा उतना ही ईमान बढ़ता जाएगा।

 


1. सूर-ए-अनामः 75

2. सुर-ए-बक़राः 260

3. बेहारुल अनवारः 70/176

 

 

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