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अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम का इल्म (ज्ञान)

अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम का इल्म (ज्ञान)

अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम पर एतेक़ाद (निष्ठाभाव) के कारण यह बात साफ़ है कि हर नबी और पैग़मबर अपने ज़माने को लोगों से ज़्यादा पढ़े लिखे (आलिम) होते हैं। दुनिया का कोई भी आलिम और दानिशवर उनका मुक़ाबला नहीं कर सकता है।

उसी तरह हमारे इमामों का इल्म भी हर दौर के आलिमों से ज़्यादा होता है। कोई भी आलिम उनसे इल्म में मोक़ाबला नहीं कर सकता है। क्योंकि हमारे इमामों का दुनिया के किसी स्कूल और मदरसे, कालेज और यूनिवर्सिटी से हासिल किया हुआ नहीं है बल्कि उनको ख़ुदा ने इल्म दिया है। इसी लिए उनको ग़ैब (छिपा हुए) का इल्म भी है कि जिनसे दुनिया के आलिम मोक़ाबला नहीं कर सकते हैं।

यह बात और है कि इमामों के इल्म के बारे में रेवायतें अलग अलग हैं जिनके बारे में अगर बहेस करें, तो बहेस बहुत लम्बी हो जाएगी। अतः हम सिर्फ़ यही कह सकते हैं कि जिनको इमामों के इल्म से जितना समझ में आया उसने उसी हिसाब से रेवायत बयान कर दी अन्यथा इमामों के इल्म की हद क्या है यह ख़ुदा के अलावा ना तो कोई जानता है और ना समझ सकता है।

हम कहते हैं : इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ का इल्म दुनिया के तमाम लोगों से ज़्यादा है और आप हर इल्म जानते हैं। इसीलिए इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ की ज़ियारत में हम पढ़ते हैं :

انک حائز کل علم

आप (यानी इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ) हर इल्म के मालिक हैं।(6)

ज़ियारते नुद्बा में हम पढ़ते हैं :

قد آتاکم اللہ یا آل یاسین خلافتہ ، وعلم مجاری امرہ فیما قضاہ و دبرہ رتبہ و أرادہ فی ملکوتہ ......

ऐ आले यासीन ! खुदा ने आप को अपना जानशीन (प्रतिनिधी) बनाया है। और आलमे मलकूत का इल्म आपको दिया है।(7)

इस ज़ियारत में आने वाले बयान से यह साफ़ पता चलता है कि अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम का इल्म इस संसार के बारे में ही नहीं बल्कि आलमे मलकूत के बारे में भी है। ज़हूर के ज़माने की बरकतों के बारे में बयान होने वाली रेवायात से मालूम होता है कि इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ आलमे मलकूत को भी मोकम्मल करेंगे।

इस लिए यह कहने में कोई हर्ज नहीं होगा कि इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ का ज़हूर सिर्फ़ इसी दुनिया के लिए नहीं हैं बल्कि इस संसार के अलाव और भी संसार हैं जिसको इमाम मोकम्मल करेंगे और सब आप के परचम के नीचे जमा हो जाएँगे।

इल्मे इमाम का मसअला बहुत ही महत्वपूर्ण मसअला है। इल्मे इमाम के बारे में, उसकी हदों के बारे में बहुत सी रेवायात बयान हुई हैं। जिन को यहाँ बयान नहीं किया जाएगा। इस लिए हर दौर का इमाम अपने ज़माने के लोगों से ज़्यादा आलिम होता है, और दुनिया के तमाम आलिमों को चाहिए कि वह अपनी इल्मी मुशकिलो को हल करने के लिए इमामों से सहायता मांगे। क्योंकि इमामत का लाज़मा (अनिवार्यताः) यह है कि इमाम अपने ज़माने के तमाम लोगों से आलिम हो। और यह इमाम की फ़ज़ीलतों में से एक है।

इस बयान से यह साफ़ पता चलता है कि ज़हूर से पहले जितनी भी तरक़्की हो जाए, फिर भी इमाम का इल्म दुनिया वालों के इल्म से ज़्यादा ही होगा, अब हम जो रेवायत बयान कर रहे हैं। उसमें इस बात को बयान किया गया है।

हज़रत इमाम-ए-रज़ा अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं :

ان الانبیاء والائمۃ علیھم السلام یوفقھم اللہ و یوتیھم من مخزون علمہ و حکمتہ ما لا یوتیہ غیرھم، فیکون علمھم فوق علم اھل زمانھم فی قولہ عزوجل : افمن یھدی الی الحق احق ان یتبع امن لا یھدی الا ان یھدیٰ فما لکم کیف تحکمون

यक़ीनन ख़ुदा ने इमामो और पैग़मबरों को यह तौफ़ीक़ दी है, और अपने इल्म के ख़ज़ाने से उन को इल्म दिया है कि जो उसने किसी को भी नहीं दिया है, इसी लिए उनका इल्म हर ज़माने को लोगों से ज़्यादा होता है।(8-9)

अतः यह दुनिया वाले जितनी भी तरक़्क़ी कर लें सब इमाम के इल्म से कम ही होगा किसी का भी इल्म इमाम के इल्म से ज़्यादा नहीं होगा। और सब का इल्म उसी तरह इमाम के इल्म के दामन में पनाह लिए हुए है जैसे सागर वर्षा की बूंदो को अपने अन्दर समेट लेती है, और वर्षा की वह बूंद सागर में मिल कर फ़ना हो जाती हैं उसी तरह सारे इल्म इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ के इल्म में मिल जाएँगे।

इमाम--ज़माना अज्जलल्लाहु फरजहुश्शरीफ लोगों की हेदायत करेंगे और दुनिया वालों को नये नये इल्म सिखाएँगे। इस तरह हक़ जाहिर हो जाएगा और बातिल नीस्त व नाबूद हो जाएगा। इमाम, इंसानों के दिलों को हर शक व शंका से पवित्र करेंगे। यह एक ऐसा सत्य है जिस को इमाम ने बयान फ़रमाया हैः

زعمت الظلمۃ ان حجۃ اللہ داحضۃ،و لو اذن لنا فی الکلام لزال الشک

ज़ालिमों ने यह गुमान कर लिया है कि हुज्जते ख़ुदा बालित हो गायी है, अगर हमें बोलने की इजाज़त हो तो सारे के सारे शक व शंका दूर हो जाए।(10)

यह बात साफ़ है कि शक के दूर होने से दिल में विश्वास और ईमान भर जाएगा। और दिल में विश्वास और ईमान भर जाने से इंसान की शख़्सियत भी मोकम्मल होजाएगी।

 


(6) मिसबाहुस्स ज़ाएरः 437. सहीफ़ए मेहदीयाः 630

(7) बेहारुल अनवारः 94/37. सहीफ़ए मेहदीयाः 571

(8) सूरए यूनुसः 35

(9) कमालुद्दीनः 680. उसूले काफ़ीः 1/202

(10) अलग़ैबा.शैख़ तूसी रहमतुल्लाह अलैहः 147

 

 

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