امام صادق علیه السلام : اگر من زمان او (حضرت مهدی علیه السلام ) را درک کنم ، در تمام زندگی و حیاتم به او خدمت می کنم.
5 ज़हूर के ज़माने में, बुरी आदतों पर विजय

ज़हूर के ज़माने में, बुरी आदतों पर विजय

अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के ख़ास साथियों ने ऐसे आमाल अन्जाम दिए जिनके कारण वह बुरी आदतों पर विजयी हुए और उन्होंने अपनी बुद्धी की शक्तियों से लाभ उठाते हुए कमाल को प्राप्त किया।

यह बिल्कुल साफ सी बात है कि जब अक़्ल कामिल हो जाए तो ना सिर्फ़ यह कि इंसान बुरे आमाल पर बल्कि बुरी आदतों पर भी विजय प्राप्त कर लेता है ।

जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः

والعقل الکامل قاھر الطبع السوء

कामिल अक़ल (पूर्ण बुद्धी) बुरी आदतों पर विजय प्राप्त कर लेती है।(5)

इस वजह से कामिल अक़ल सारी बुरी आदतों पर विजय प्राप्त कर लेती है यहाँ तक कि उन आदतों पर भी कि जो उसकी ज़ात का हिस्सा बन चुकी हों। फिर वह उन्हीं अक़ली शक्तियों की सहायता से उसपर विजय प्राप्त करता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम से यह नोक्ता प्राप्त होता है कि ख़ुदा के ख़ास बन्दों और बुद्धिमानों में बुरी आदतों का पाया जाना असंभव है।

यह ऐसे लोगों के लिए आकाशवाणी है कि जिनके अंदर बुरी आदतें पायी जाती हैं वे निराश ना हों बल्कि ख़ुद को दुआ और प्रयास के माध्यम से कमाल तक पहुँचाऐ।

यहाँ तक कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इसी रेवायत में कमाल चाहने वालों के लिए रास्ता बताया हैः

وعلی العاقل ان یحصی علی نفسہ مساویھا فی الدین و الرأی والأخلاق والأدب فیجمع ذلک فی صدرہ أو فی کتاب و یعمل فی ازالتھا

बुद्धिमान का कर्तव्य यह है कि वह अपने नफ़्स की सारी बुराईयों को अपने धर्म, और अख़लाक़ में शुमार करे और उनको अपने मस्तिष्क में जमा करे और फिर उनको ख़त्म करनें का प्रयास करे।(6)

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बुद्धिमानों को हुक्म दिया है कि वह बुराईयों को याद करके उनको ख़त्म करने का प्रयास करें और यह एक ऐसा बेहतरीन क़ानून है कि अगर इसके अनुसार अमल करें तो यह आपको आला दर्जें तक पहुँचा देगा।

क्योंकि इस कार्य से आपके तजरुबे में बढ़त होगी और जिसका तजरुबा ज़्यादा होता है उसकी अक़्ल भी ज़्यादा होती है और वह 100 वर्ष के रास्ते को भी, बहुत जल्दी तै कर लेता है।

तजरूबे के कारण बुद्धी का बढ़ना, यह एक ऐसा नुक्ता है कि जिसकि तरफ़ हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने इसी रेवायत के शुरु में ही फ़रमा दिया थाः

العقل عقلان؛ عقل الطبع وعقل التجربۃ، و کلاھما یؤدّی الی المنفعۃ

बुद्धी (अक़्ल) दो प्रकार की होती हैः अक़ले तबीयी (वह अक़्ल जो उसके पास होती है) और अक़ले तजरुबी (वह अक़्ल जो दुनिया में रहके दुनियावी उतार चढ़ाव के कारम उसको प्राप्त होती है।) । और दोनों ही इंसान के लिए लाभदायक है।(7)

इस वजह से इंसान के अंदर अक़्ले ज़ाती और फ़ितरी अक़्ल के अलावा अक़ले तजरुबी भी पायी जाती है। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि दोनों ही बुद्धियाँ इंसान को लाभ पहुँचाती हैं।

इन तमाम बातों से कुछ नोकात प्राप्त होते हैः

1. बुद्धी दो तरह की होती हैः ज़ाती और तजरुबी।

2. जिस तरह इंसान की ज़ाती बुद्धी उस को लाभ पहुँचाती है उसी तरह अक़ले तजरुबी भी इंसान को लाभ पहुँचाती है।

3. बुद्धिमान पर वाजिब है कि वह अपनी दीनी और अख़लाक़ी बुराईयों को पहचाने और उन को ख़त्म करने का प्रयास करे।

4. अतीत की ग़ल्तियों के कारण निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि उसे हज़रत अली अलैहिस्सलाम के फ़रमान के अनुसार उसे अमल करना चाहिए और उससे ईब्रत (कुछ सीखना और दोबारा वही ग़ल्ती ना करना। ) लेना चाहिए।

5. अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम के विशेष साथी और दोस्त शुरु ही से नेक और अच्छी आदतों के मालिक थे और उन्होंने कष्ट और प्रयास से यह मकाम प्राप्त किया था।

6. अल्लाह के विशेष बन्दों और बुद्धिमानों ने अपनी बुद्धी की शक्तियों से लाभ उठा कर विजय हासिल की थी।

7. हर बुद्धिमान आला मक़ाम का मालिक होता है क्योंकि जिसकी बुद्धी पूर्ण होती है वह आलमे मलाकूत (वह संसार जहाँ फ़रिश्ते रहते हैं।) से संपर्क करके मलकूती होजाता है।

ऐसे लोग शरहे सदर करके नूरे ईलाही के मालिक बन जाते है और इसी नूर ईलाही के कारण हक़ीक़तों को देखते है।

ख़ुदा वन्दे आलम  क़ुर्आन में फ़रमाता हैः

افمن شرح اللہ صدرہ للاسلام فھو علیٰ نور من ربہ فویل للقاسیۃ قلوبھم من ذکر اللہ اولئک فی ضلال مبین

क्या वह इंसान जिसका सीना ख़ुदा ने इस्लाम के लिए कुशादा कर दिया है वह अपने ख़ुदा की तरफ़ नूर का लेने वाला है और अफ़सोस उन लोगों के हाल पर जिनके दिल ईश्वर के लिए कठोर हो गए हैं तो वह ख़ुली हुई गुमराही में हैं। (वह कि जो कुफ़्र की वजह से ईश्वर की नेमतों से लाभ नही उठा सका ?) (8)

जी हाँ! बुद्धी के कमाल के माध्यम से रास्ता पाने वाले लोग ऐसे हैं कि जिनके दिल जीवित हैं और जिन्होंने दिल के अन्धेपन से नेजात प्राप्त की है जो कि बहुत ही बुरा अन्धापन है।

रसूले ख़ुदा हज़रत मोहम्मद मुसतफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने फ़रमायाः

شر العمی عمی القلب

सबसे बुरा अन्धापन, दिल का अन्धापन होता है।(9)

 


(5) बेहारुल अनवारः 78/6

(6) बेहारुल अनवारः 78/6

(7) बेहारुल अनवारः 78/6

(8) सूरए ज़ोमर, आयत न0. 22

(9) बेहारुल अनवारः 70/51

 

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